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## Verse 128: **Explanation of the Six Substances and Five Astikayas** A substance is always non-zero with respect to its own substance. Sometimes, in a living being, there is infinite knowledge, and sometimes there is finite knowledge. Sometimes, in a living being, there is infinite ignorance, and sometimes there is finite ignorance. This, being otherwise impossible, reveals the existence of the soul in liberation. ||37||
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________________ १२८ षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन द्रव्यं स्वद्रव्येण सदाऽशून्यमिति, क्वचिज्जीवद्रव्येऽनंतं ज्ञानं क्वचित्सांतं ज्ञानमिति, क्वचिज्जीवद्रव्येऽनंतं क्वचित्सांतमज्ञानमिति-एतदन्यथानुपपद्यमानं मुक्तौ जीवस्य सद्धाक्षमावेद यतीति ।।३७॥ हिन्दी समय व्याख्या गाथा-३७ अन्वयार्थ ( सद्भावे असति ) यदि ( मोक्षमें ) जीवका सद्भाव न हो तो ( शाश्वतम् ) शाश्वत, ( अथ उच्छेदः ) नाशवंत, [ भव्यम्] भव्य [ होने योग्य], ( अभव्यम् च ) अभव्य ( न होने योग्य ), ( शून्यम् ) शून्य, ( इतरत् च ) अशून्य, ( विज्ञानम् ) विज्ञान और ( अविज्ञानम् ) अविज्ञान ( न अपि युज्यते ) ( जीवद्रव्यमें ) भी घटित नहीं हो सकते। ( इसलिये मोक्षमें जीवका सद्भाव है ही।) । टीका-यहाँ, 'जीवका अभाव सो मुक्ति है, इस बातका खंडन किया है । (१) द्रव्य द्रव्यरूपसे शाश्वत है, (२) नित्य द्रव्यमें पर्यायोंका प्रति समय नाश होता है, (३) द्रव्य सर्वदा अभूत पर्यायोरूपसे भाव्य ( होनेयोग्य, परिणमित होने योग्य ) है, (४) द्रव्य सर्वदा भूत पर्यायोरूपसे अभाव्य ( न होनेयोग्य ) है, (५) द्रव्य अन्य द्रव्योंसे सदा शून्य है, (६) द्रव्य स्वद्रव्यसे सदा अशून्य है, (७) किसी जीवद्रव्यमें अनंत ज्ञान और किसीमें सांत ज्ञान है, (८) किसी जीवद्रव्यमें अनंत अज्ञान और किसीमें सांत अज्ञान है-यह सब, अन्यथा घटित न होता हुआ, मोक्ष में जीवके सद्भावको प्रगट करता है ।।३७।। संस्कृत तात्पर्यवृत्ति गाथा-३७ अथ जीवाभावो मुक्तिरिति सौगतमतं विशेषेण निराकरोति-सस्सदमधमुच्छेदं-सिद्धावस्थायां तावटैंकोत्कीर्णज्ञायकैकरूपेणाविनश्वरत्वाद् द्रव्यरूपेण शाश्वतस्वरूपमस्ति, अथ अहो पर्यायरूपेणागुरुलघुकगुणषट्स्थानगतहानिवृद्ध्यपेक्षयोच्छेदोस्ति । भव्वमभच्चं च—निर्विकारचिदानंदैकस्वभावपरिणामेन भवनं परिणमनं भव्यत्वं, अतीतमिथ्यात्वरागादिविभावपरिणामेन अभवनपरिणमनमभव्यत्वं च सिद्धावस्थायां । सुण्णमिदरं च स्वशुद्धात्मद्रव्यविलक्षणेन परद्रव्यक्षेत्रकालभावचतुष्टयेन नास्तित्वं शून्यत्वं, निजपरमात्मानुगतस्वद्रव्यक्षेत्रकालभावरूपेणेतरच्चाशून्यत्वं । विण्णाणमविण्णाणंसमस्तद्रत्यगुणपर्यायैकसमयप्रकाशनसमर्थसकलकेवलज्ञानगुणेनं विज्ञान विनष्टमतिज्ञानादिछद्मस्थज्ञानेन परिज्ञानादविज्ञानमिति । णवि जुज्जदि असदि सब्भावे----इदं तु नित्यत्वादिस्वभावगुणाष्टकमविद्यमानजीवसद्भावे मोक्षे न युज्यते न घटते तदस्तित्वादेव ज्ञायते मुक्तौ शुद्धजीवस्दावोस्ति । अत्र स एवोपादेय इति भावार्थः ।।३७।। एवं भट्टचार्वाकमतानुसारिशिष्यसंदेहविनाशार्थं जीवस्यामूर्तत्वव्याख्यानरूपेण गाथात्रयं गतं ।
SR No.090326
Book TitlePanchastikay
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreelal Jain Vyakaranshastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages421
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size11 MB
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