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________________ HAN ART कल्याणमन्दिर स्तोत्र : ८७ प्रमाद छोड़कर भगवान् पार्श्वनाथकी सेवा करें । यह "दुन्दुभि" प्रातिहार्यका वर्णन है ।।२५।। उद्योतितेषु भवता भुवनेषु नाथ ! तारान्वितो विधुरयं विहताधिकारः । मुक्ताकलापकलितोल्लसितातपत्र व्याजात्रिधा धृततनुर्बुवमभ्युपेतः ।।२६।। तेरे प्रकाशित किये जग में हुआ है, तारा समेत अधिकार-विहीन चन्द्र । मुक्ता-कलाप-परिशोभित-छत्ररूप हो, तीन देह धरके तव पास आया ।। २६ ।। टोका-भी नाथ ! अयं तारान्वितो नक्षत्रग्रहतारकान्वितो विधुश्चन्द्रः ध्रुवं निश्चितं । अभ्युपेतः समेत: केषु सत्सु । भवता परमेश्वरेण । भुवनेषु त्रैलोक्येषु । उद्योतितेषु सत्सु । कथंभूतोऽयं ? विहतः अधिकारो येन सः । पुनः कथंभूतोऽयं ? मुक्तानां कलापः समूहस्तेन कलितं सहितं उल्लसितं शोभायमानं च तत् आतपत्रं च तस्य व्याज मिषं । तत्तस्मात् त्रिधा धृततनुः शरीरं येन सः ।।२६।। ___ अन्वयार्थ-( नाथ !) हे स्वामिन् ! ( भवता भुवनेषु उद्योतितेषु 'सत्सु') आपके द्वारा तीनों लोकोंके प्रकाशित होनेपर (विहताधिकारः) अपने अधिकारसे भ्रष्ट तथा (मुक्ताकलापकलितोल्लसितातपत्रव्याजात्) मोतियोंके समूहसे सहित अतएव शोभायमान सफेद छत्रके छलसे ( तारान्वितः) ताराओं से वेष्टिन (अयम् विधुः ) यह चन्द्रमा (त्रिधा धृततनुः ) तीन-तीन शरीर धारण कर (ध्रुवम् ) निश्चयसे ('त्वाम्' अभ्युपेतः) आपकी सेवाओंमें प्राप्त हुआ है। __ भाषार्थ-हे प्रभो ! जब आपने अपनी कांति व ज्ञानसे तीनों लोकों को प्रकाशित कर दिया तब मानों चन्द्रमाका प्रकाश करने रूप अधिकार छीन लिया गया । इसलिए वह तीन छत्रका वेष
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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