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________________ ५० : पंचस्तोत्र मत्तद्विपेन्द्रमृगराजदवानलाहि संग्रामवारिधिमहोदरबन्धनोत्यम् 'तस्याशु नाशमुपयातिभयं भियेव यस्तावक स्तवमिमं मांतमानधीत ।। ४७।। जो बुद्धिमान इस सुस्तव को पढ़े हैं, होके विभीत उनसे भय भाग जाता। दावाग्नि-सिन्धु अहिकारण-रोगका त्यों, पञ्चास्य मत्त गजका सब बन्धनोंका ।। ४७ ।। टीका-भो नाथ ! यः कश्चिन्मतिमान् पुमान् । इमं प्रसिद्ध तावक स्तवं । अधीते पापठीति । तस्य पुंसः पुरुषस्य । मत्तद्विपेन्द्रमृगराजदवानलाऽहिसंग्रामवारिधिमहोदरबन्धनोत्थं भयं प्रणाशमुपयाति व्रजति । मत्तद्विपेन्द्रश्च मृगराजश्च दावानलश्च अहिश्च सङ्ग्रामश्च वारिधिश्च महोदरं च जलोदरं च बन्धनानि च मत्तद्विपेन्द्रमृगराजदवानलाऽहिसंग्रामवारिधि महोदरबन्धनानि तेभ्य उत्थं सतुत्थितं । कयेव ? उत्प्रेक्षते भियेव भयेनेव ।।४७।। अन्वयार्थ (य:) जो (मतिमान्) बुद्धिमान मनुष्य ( तावकम् ) आपके (इमम् ) इस ( स्तवम् ) स्तोत्रको ( अधीते) पढ़ता है, (तस्य ) उसका (मत्तद्विपेन्द्रमृगराजदवानलाहिसंग्रामवारिधिमहोदरबन्धनोत्थम्) मत्त हाथी सिंह, वनाग्नि, साँप, समुद्र, जलोदर और बन्धन आदिसे उत्पन्न हुआ ( भयम्) डर (भिया इव ) मानो भयसे ही (आशु ) शीघ्र (नाशम् ) विनाश को (उपयाति) प्राप्त हो जाता है। भावार्थ हे प्रभो ! आपका स्तवन करनेसे सब तरहके भय नष्ट हो जाते हैं । ।।४।। स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र गुणैर्निबद्धा भक्त्या मया विविधवर्णविचित्रपुष्पाम् । धत्ते जनो य इह कण्ठगतामजस्रं तं मानतुङ्गमवशा समुपैति लक्ष्मीः ।। ४८।। ५. 'तस्य प्रणाशमुपयति' अमरप्रभटीकासम्पतः पाठः ।
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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