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________________ ४६ : पंचस्तोत्र तरह (आशु ) शीघ्र ही (भिदाम् ) विनाश को ( उपैति ) प्राप्त हो सकती है । भावार्थ - हे नाथ ! जिस तरह सूर्य की किरणों से अन्धकार नष्ट हो जाता है, उसी तरह आपका यशोगान करने से बड़े-बड़े राजाओं की सेनाएँ भी युद्ध में नष्ट हो जाती हैं— हार जाती हैं ।। ४२ ।। कुन्ताग्रभिन्नगजशोणितवारिवाहवेगावतारतरणातुरयोधभीमे युद्धे जयं विजितदुर्जयजेयपक्षास्त्वत्पादपङ्कजवनाश्रणियो लभन्ते ।। ४३ ।। बछे लगे बह रहे गज रक्त के हैं. - तालाब से विकल हैं तरणार्य योद्धा । जोते न जायँ रिपु, संगर बीच ऐसे. तेरे प्रभो ! चरण- सेवक जीतते हैं ॥ ४३ ॥ टीका -- भो भगवन् ! त्वत्पादपङ्कजवनाश्रयिणः प्राणिनां युद्ध रा जयं लभन्ते विजयं प्राप्नुवंति । तव पादौ त्वत्पादौ तावेव पङ्कजे कमले लथोर्वनमाश्रयन्ति ते त्वत्पादपङ्कजवनाश्रयिणः । कथंभूतास्ते ? विजिता दुर्जया जेयपक्षाः शात्रवा यैस्ते । कथंभूते युद्धे ? कुन्तानां भल्लानामग्राणि तैर्भिन्ना विदारिता ये गजास्तेषां शोणितानि रुधिराणि तान्येव वारीणि जलानि तेषां वाहाः प्रवाहास्तेषु वेगानां रयाणां अवतारस्तत्र तरणातुरा व्याकुला ये योधाः सुभटास्तैर्भीमं भयंकरं तस्मिन् ।। ४३ ।। | अन्वयार्थ – ( त्वत्पादपङ्कजवनाश्रयिण: ) आपके चरणरूप कमलों के वनका आश्रय लेने वाले पुरुष ( कुन्ताग्रभिन्नगजशोणितवारिवाहवेगावतारतरणातुरयोधभीमे ) भालोंके अग्रभाग से विदारे गये हाथियों के खूनरूपी जल के प्रवाह को वेग से उतरने और तैरने में व्यग्र योद्धाओं के द्वारा भयंकर ( युद्धे ) युद्ध में (विजितदुर्जयजेयपक्षाः सन्तः ' ) जीत लिया है मुश्किल से I
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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