SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भक्तामर स्तोत्र : ४८ कण्ठ की तरह काले ( क्रोधोद्धतम्) क्रोध से उद्दण्ड और (उत्फणम् ) ऊपर को फन उठाये हुए ( आपतन्तम् ) सामने आने वाले (फणिनम् ) साँप को ( निरस्तशंङ्कः 'सन्') शंङ्कारहित होता हुआ (क्रमयुगेन ) दोनों पाँवों से ( आक्रामति ) लाँघ जाता है । भावार्थ-हे प्रभो ! जो आपके नाम का स्मरण करता है, भयंकर साँप भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।।४१ ।। वल्लात्तुरङ्गगजगर्जितभीमनाद माजौ बलं बलवतामपि भूपतीनाम् । उद्यद्दिवाकरमयूखशिखापविद्धं त्वत्कीर्तनात्तम इवाशुभिदामुपैति ।। ४२।। घोड़े जहाँ हिनहिने, गरजे गजाली, ऐसे प्रबल सैन्य धराधियों के। जाते सभी बिखर हैं तव नाम गाये, ज्यों अंधकार उगते रवि के करों से ।। ४२ ।। टीका– भो देव ! आजौ संग्रामे बलवतामपि भूपतीनां राज्ञां बलं सैन्यं त्वत्कीर्तनात् भवनामस्मरणात् उद्यदिवाकरमयूखशिखापविद्धं तम इव आशु शीघ्रं भिदामुपैति भेदं प्राप्नोतीत्यर्थः । उद्यनुदयप्राप्तो दिवाकरः सूर्यस्तस्य मयूखास्तेषां शिखास्ताभिरपविद्ध भिदां प्राप्त । कथंभूतं बलं? वल्गन्तो ये तुरंगा अश्वास्तथा गजानां गर्जितानि तैीमा भयंकरा नादाः शब्दा यस्मिन् तत् । तव कीर्तनं त्वत्कीर्तनं तस्मात् । बलं पराक्रमो विद्यते येषां ते बलवन्तस्तेषाम् ।।४२।। अन्वयार्थ—( त्वत्कीर्तनात् ) आपके यशोगान से (आजी) युद्ध क्षेत्रमें ( वल्गत्तुरङ्गगजगजितभीमनादम् ) उछलते हुए घोड़े और हाथियों की गर्जना से भयंकर है शब्द जिसमें ऐसी ( बलवताम्) पराक्रमी भूपतीनाम अपि) राजाओं की भी (बलम् ) सेना ( उद्यदिवाकरमयूखशिखापविद्धम् ) उगते हुए सूर्य की किरणों के अग्रभाग से बाँधे गये ( तमः इव ) अन्धकार की
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy