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________________ भक्तामर स्तोत्र : ३७ अन्वयार्थ (गन्धोदबिन्दुशुभमन्दमरुत्प्रपाता) सुगन्धित जलकी बूंदों और उत्तम मन्द हवाके साथ है प्रपात गिरना जिसका ऐसी (उद्धा) श्रेष्ठ और (दिव्या) मनोहर (मन्दारसुन्दरनमेरुसुपारिजातसन्तानकादिकुसुमोत्करवृष्टिः) मन्दार, सुन्दर, नमेरु, पारिजात, सन्तानक आदि कल्पवृक्षोंके फूलोंके समूहकी वर्षा (ते) आपके ( वचसाम्) वचनोंकी (ततिः वा) पंक्तिकी तरह (दिवः) आकाशसे ( पतति ) पड़ती है। भावार्थ हे नाथ ! सुगन्धित जल और मन्द हवाके साथ आकाशसे जो कल्पवृक्षके फूलोंकी वर्षा होती है, वह आपके मनोहर वचनावलीकी तरह शोभित होती है। यह पुष्पवृष्टि प्रातिहार्यका वर्णन है ।।३३।। शुम्भत्प्रभावलयभूरिविभा विभोस्ते लोकत्रये धुतिमतां द्युतिमाक्षिपन्ती । प्रोद्यदिवाकरनिरंतरभूरिसंख्या दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोमसौम्याम् ।।३४।। त्रैलोक्य की सब प्रभामय वस्तु जोती. भामण्डल प्रबल है तव नाथ ऐसा । नाना प्रचण्ड रवि-तुल्य सुदीप्तिधारी, __ हैं जीतता शशि सुशोभित रातको भी ।। ३४ ।। टीका–भो स्वामिन् ! ते तव । विभोः परब्रह्मणः । शुम्भत्प्रभावलयभूरिविभा । भामण्डलप्रभा लोकत्रयधुतिमतां सूर्यचन्द्रग्रहनक्षत्रप्रकीर्णतारकादीनां द्युति दीप्तिमाक्षिपन्ती तिरस्कुर्वन्तौ । सती दीप्त्या कृत्वा । निशामपि रात्रिमपि जयत्यंपि । शुम्भच्छोदमानंयत्प्रभावलयं भामण्डलं तस्य भूरिश्चासौं विभा च शुम्भत्प्रभाभलयभूरिविभा । लोकत्रये द्युतिमन्तस्तेषाम् । कथंभूता भामण्डलप्रभा? प्रोद्यन्त: उदयन्तो दिवाकरा: सूर्यास्तेषां निरान्तरा आन्तर्यरहिता भूरयः प्रचुरा: संख्या गणना यस्याः सा । पुनः कथंभूता ? सोमश्चन्द्रस्तद्वत्सौम्या मनोज्ञा ||३४।।
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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