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________________ ३४ : पंचस्तोत्र अन्वयार्थ - ( कुन्दावदातचलचामरचारुशोभम् ) कुन्दके फूलके समान स्वच्छ चँवरों के द्वारा सुन्दर है, शोभा जिसकी ऐसा ( तव ) आपका ( कलधौतकान्तम् ) सुवर्ण के समान सुन्दर ( वपुः ) शरीर ( उद्यच्छशाङ्कशुचिनिर्झरवारिधारम् ) जिस पर चन्द्रमा के समान शुक्ल झरने के जल की धारा बह रही है, ऐसे ( सुरगिरे: ) मेरुपर्वत के ( शातकौम्भम् ) सोने के बने हुए (उच्चैस्तटम् इव ) ऊँचे तट की तरह (विभ्राजते ) शोभायमान होता है । भावार्थ- हे प्रभो ! जिस पर देवों के द्वारा सफेद चँवर ढोले जा रहे हैं, ऐसा आपका सुवर्णमय शरीर उतना सुहावना मालूम होता है, जितना कि झरनेके सफेद जल से शोभित मेरुपर्वत का सोने का शिखर । यह चँवर प्रातिहार्यका वर्णन है ||३०|| छत्रत्रयं तव विभाति शशाङ्ककान्तमुच्चैः स्थितं स्थगितभानुकरप्रतापम् । मुक्ताफलप्रकरजालविवृद्धशोभं प्रख्यापयत्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ।। ३१ ।। मोती मनोहर लगे जिनमें सुहाते, नीके हिमांशु-सम, सूरज-तापहारी । हैं तीन छत्र शिरपै अति रम्य तेरे. जो तीन लोक परमेश्वरता बताते ॥ ३१ ॥ टीका - भो भगवन् ! तव भगवतः । छत्रत्रयं शशांक वदुज्ज्वलं शशांककान्तं । पुनः कथं ? स्थगित उत्तंभितो भानुकराणां सूर्यकिरणानां प्रतापो येन तत् । पुनः कथं ? मुक्ताफलानां प्रकारा: गुच्छा: मुक्ताफलप्रकारास्तेषां जालानि पुंजास्तैर्विशेषेण वृद्धा वर्धमाना शोभा यस्य तत् । पुनः कथं? त्रिजगतः परमेश्वरस्य परमैश्वर्य प्रख्यापयत् प्रवदत् ( प्रकर्षेण ) ख्यापयति कथयतीति प्रख्यापयत् । परमेश्वरस्य भावः परमेश्वरत्वं ||३१||
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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