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________________ भक्तामर स्तोत्र : २९ नाथ ! तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्तिहराय तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय । नमस्त्रिजगत: तुभ्यं परमेश्वराय तुभ्यं नमो जिन ! भवोदधिशोषणाय ।। २६ । । त्रैलोक्य- आर्तिहरनाथ तुझे नमूँ मैं. हे भूमि के विमल रत्न ! तुझे नमूँ मैं । हे ईश ! सर्व जगके तुझको नयूँ मैं, I मेरे भवोदधि-विनाशि तुझे नमूँ मैं ।। २६ । टीका - भो नाथ ! तुभ्यं भगवते नमः । कथंभूताय तुभ्यं ? त्रिभुवनस्यार्ति दुःखं हरतीति त्रिभुवनार्तिहरस्तस्मै भो देव! तुभ्यं नमः । कथं भूताय तुभ्यं ? क्षितितलेऽमलभूषणं क्षितितलामल भूषणं तस्मै । भो जिन ! तुभ्यं नमः । कथंभूताय तुभ्यं ! त्रिजगतश्चाधोमध्योर्ध्वलोकस्य । परमश्चासौ ईश्वरः परमेश्वरस्तस्मै भो जिन ! तुभ्यं नमः । कथंभूताय तुभ्यं ? भवलक्षणो य उदधिः समुद्रस्तं शोषयतीति भवोदधिशोषणस्तस्मै ||२६|| P अन्वयार्थ -- (नाथ) हे स्वामिन् ! (त्रिभुवनार्तिहराय ) तीनों लोकों के दुःखों को हरने वाले ( तुभ्यम्) आपके लिये ( नमः 'अस्तु' ) नमस्कार हो ( क्षितितलामलभूषणाय ) पृथिवीतल के निर्मल आभूषणस्वरूप ( तुभ्यम्) आपके लिये ( नमः 'अस्तु' ) नमस्कार हो, ( त्रिजगत: ) तीनों जगत् के (परमेश्वराय) परमेश्वरस्वरूप ( तुभ्यम्) आपके लिये ( नमः 'अस्तु' ) नमस्कार हो, और (जिन ! ) हे जिनेन्द्रदेव ! ( भवोदधिशोषणाय ) संसार - समुद्र के सुखाने वाले ( तुभ्यम्) आपके लिये ( नमः 'अस्तु' ) नमस्कार हो । भावार्थ - हे भगवन् ! आप तीनों लोकों की विपत्तियाँ हरने वाले हो, महीतल के निर्मल आभूषण हो, त्रिभुवन के स्वामी हो और संसार - समुद्र के शोषक हो, इसलिये आपको नमस्कार हो ।। २६ ।।
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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