SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७० : पंचस्तोत्र __सामार्थ-जिन माँ लिनबाली को हलमान करने वाला अपनी आत्मा को पवित्र बना लेता है, उनको मन में धारण करने वाला सब इच्छाओं को पूर्ण कर उत्तम स्वर्ग-मुक्त अवस्था को पाता है, जो देवेन्द्र, धरणेन्द्र, यक्षेन्द्र, विद्याधरों के द्वारा भी पूजनीय है ऐसी माँ सरस्वती देवी हमारी प्रतिदिन रक्षा करें । सरस्वत्याः प्रसादेन काव्यं कुर्वन्तु मानवाः । तस्मान्निश्चल भावेन, पूजनीया सरस्वती ।।१।। सरस्वती के परसाद से, सभी काव्य करें पूर्ण । इसलिये निश्चल भाव से. सरस्वती हो पूज्य ।। १ ।। अर्थ-श्री सरस्वती के प्रसाद से सभी मनुष्य काव्य की पूर्ण करते हैं इसलिये वह सरस्वती देवी निश्चल भाव से सदा पूज्य है। श्री सर्वज्ञमुखोत्पन्ना, भारती बहुभाषिणी। अज्ञान तिमिरं हन्ति, विद्या बहुविकासिनी ।।२।। श्री सर्वज्ञ मुख से उत्पन्न हो , भारती बहुभाषिनी । अज्ञानतम हरती सदा, बहुविद्या विकासिनी ।। २ ।। अर्थ-जो श्रीवीतराग सर्वज्ञ भगवान अरहन्त के मुखकमल से उत्पन्न हुई है, अनेक भाषा रूप है, ऐसी माँ जिनवाणी अज्ञानरूपी अन्धकार का नाश कर विविध विद्याओं का विकास करने वाली है। सरस्वती मया दृष्टा दिव्या कमल-लोचना । हंसस्कन्ध समारूढा, वीणा पुस्तक धारिणी ।।३।। सरस्वती देखी जो मैंने, दिव्य कमल-लोचन लसे । जो विराजित हंसस्कन्ध पर, वीणा पुस्तक को धरे ।। ३ ।। अर्थ—मेरे द्वारा देखी गई सरस्वती देवी के कमल समान
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy