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श्री सरस्वती स्तोत्र : २७१ सुन्दर दिव्य नेत्र हैं जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण की
भावार्थ-मैंने उस माँ जिनवाणी के दर्शन पाये हैं जो दिव्य व्यवहार-निश्चय रूप लोचनों से युक्त हैं तथा जो सप्तभंग रूपी सुन्दर वीणा और द्वादशांग श्रुत रूपी पुस्तक को अपने दोनों (मुनि-श्रावक ) रूपी हाथों में धारण किये हुए हैं और विवेक रूपी हंस पक्षी के स्कन्ध पर आरूढ़ हैं।
प्रथम भारती नाम, द्वितीयं च सरस्वती । तृतीयं शारदादेवी, चतुर्थ हंसगामिनी ।।४।। पञ्चमं विदुषां माता, षष्ठं वागीश्वरि तथा । कुमारी सप्तमं प्रोक्तं, अष्टमं ब्रह्मचारिणी ।।५।। नवमं च जगन्माता, दशमं ब्राह्मिणी तथा । एकादशं तु ब्रह्माणी, द्वादशं वग्दा भवेत् ।।६।। वाणी त्रयोदशं नाम, भाषा चैव चतुर्दशम् । पञ्चदशं श्रुतदेवी, षोड़शं गौर्निगद्यते ।।७।। नाम भारती प्रथम है, द्वितीय सरस्वती जान । नाम शारदा तीसरा, हंसगामिनी चार ।। ४ ।। ज्ञानीजन माता पाँचौं, वागीश्वरि छह मान । कुमारी देवी सातवाँ, ब्रह्मचारिणी आठ ।। ५ ।। जगन्माता नवम है, दसम ब्राह्मिणी मान । ग्यारहवाँ ब्रह्माणी कहा, वरदा बारह जान ।। ६ ।। तेरहवाँ वाणी कहा, चौदह भाषा मान ।
श्रुतदेवी पन्द्रह महा, सोलह "गौ" मह जान ।।७।। अर्थ-सरस्वती माँ जिनवाणी का पहला नाम भारती, दूसरा सरस्वती, तीसरा शारदादेवी, चौथा हंसगामिनी, पाँचवाँ