________________
२६८ : पंचस्तोत्र
-
कमल-सम सुन्दर है, जो जिनेन्द्रदेव के मुखकमल से निर्गत ७०० लघुभाषा और १८ भाषा से ऋत है ऐसी माँ सरस्वती हमी सबकी रक्षा करें।
अर्द्धन्दु मण्डितजटा ललित स्वरूपे,
__ शास्त्र प्रकाशिनि समस्त कलाधिनाथे । चिन्मुद्रिका जपसरामय पुस्तकांके,
वागीश्वरि प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ।।६।। अर्द्ध इन्दू से विभूषित जटा से मनहर लसा. सर्वशास्त्रों की प्रकाशो कला स्वामिनी जो सदा । ज्ञान मुद्रा अभयदातृ जप की माला पुस्तकं, वागीश्वरि रक्षा करो नित दिव्यमूर्ति प्राप्त है ।। ६ ।।
अर्थ-अर्द्धचन्द्र से विभूषित जटा के संयोग से जिनका स्वरूप अत्यन्त मनोहर है, जो सम्पूर्ण शास्त्रों को प्रकाश करने वाली हैं जो समस्त कलाओं की स्वामिनी हैं और जिनकी ज्ञान मुद्रा, जपमाला अभयदान तथा पुस्तक ही जिनके लक्षण हैं ऐसी माँ श्री सरस्वती देवी ! सदा हमारी रक्षा करें ।।६।।
भावार्थ-जो नय रूप अर्द्धचन्द्र से सुशोभित तथा जटा रूप प्रमाण के योग से अत्यन्त मनोहर है जो द्वादशांग श्रुतज्ञान को प्रकाशित करने वाली पुरुष की ७२ व स्त्री की ६४ कलाओं के विवेचन से पारंगत कलाओं की स्वामिनी है, जिनकी ज्ञान मुद्रा ज्ञान की, अभय मुद्रा अहिंसा की जप की माला ध्यान तथा पुस्तक अध्ययन की शिक्षा दे रही है ऐसी माता सरस्वती हमारी प्रतिदिन रक्षा करें ।।६।। डिंडीरपिंड हिमशंखसिताभ्रहारे,
पूर्णेन्दु बिम्बुरुचि शोभित दिव्यगात्रे । चांचल्यमान मृगशावललाट नेत्रे,
वागीश्वरि प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ।।७।।