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________________ अकलंक स्तोत्र : २६१ { वन्दे ) मैं वन्दन, नमस्सकार करता हूँ ( यः ) जो (त्यक्तदोषम् ) राग-द्वेष व क्षुधादि दोषों से रहित है ( भवभयमथनम् ) संसार के भय का विनाशक है ( च ) और ( ईश्वरं ) तीन लोक का स्वामी है त्रिलोकाधिपति है। भावार्थ-प्रस्तुत श्लोक में आचर्य श्री अकलंक स्वामी ने बताया है कि मेरे द्वारा वन्दनीय मेरा महादेव कौन है ? जिसके हाथों हथियार नहीं है, वक्षस्थल पर मुण्डमाला नहीं लटक रही है, शरीर भस्म से युक्त नहीं है, शूल से रहित है, वैरागी होने से जितेन्द्रिय निष्कामी जिसके साथ स्त्री कभी नहीं रहती है। जिसके हाथ में नर कयाल नहीं रहता, जिसके मस्तक पर अर्द्धचन्द्र नहीं है, याद में सर्प नहीं है जी बीमारी सर्व दोषों से रहित संसार भय का विनाशक है, देवों का देव देवाधिदेव: महादेव है, तीनों लोकों का एकमात्र स्वामी है वही त्रिलोकाधिपति देवाधिदेव अरहन्न देव मेरे द्वारा वन्दनीय है । मैं उनकी वन्दना करता हूँ। इनसे भिन्न अन्य कोई लौकिक देव महादेव नहीं है। किं वाद्योभगवानमेयमहिमा देवाऽकलंकः कलौ काले यो जनता सुधर्म निहितो देवोऽकलंको जिनः । यस्यस्फारविवेकमुद्रलहरीजाले प्रमेयाकुला निर्मग्ना तनुतेतरां भगवतो ताराशिरः कम्पनम् ।।१५।। ___ अन्वयार्थ (यस्य) जिन ( भगवान् ) भगवान् भट्टाकलंक स्वामी (स्फारविवेकमुद्रलहरीजाले) विशाल सम्यज्ञान रूप समुद्र की तरंगों के समूह में (निर्मग्ना) डूबी हुई अतएव (प्रमेयाकुला) अपार प्रमेय-पदार्थों से व्याप्त ( भगवती) भगवती श्रुत देवी ने (ताराशिरः कम्पनम् ) तारा देवी के मस्तक को हिलाने की क्रिया को ( तनुतेतराम् ) विस्तारा और ( यः) जिन अकलंक देव ने (कलौ काले) पञ्चमकाल मे (जनताः सुधर्म
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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