SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६० : पंचस्तोत्र हिमशीतल राजा की सभा में जीतकर उस तारादेवी के घड़े को पैर से फोड़ दिया था। दिगम्बर सन्त वीतरागी होते हैं उन्हें ऐसा कार्य नहीं करना था यदि ऐसी शंका करें तो आचार्यश्री कहते हैं-मैंने यह कार्य किसी "अहं' के वश या बौद्धों से द्वेषवश नहीं किया है अपितु अनन्त ज्ञानमय पिटारा परमप्रभु आत्मा है उसके प्रति उनकी जो भूल है नैरात्म्यवाद/शून्यवाद जिसके आश्रय से जीवों का मोक्षमार्ग भ्रष्ट होता है उससे बचकर उन्हें मोक्ष-पथ पर ले जाने के लिये "कारुणमयी" बुद्धि से यह मैंने कार्य किया है 1 मेरा किसी प्राणी से द्वेष नहीं है, नहीं मुझे अहंकार है । सत्य-पथ का प्रदर्शन, मिथ्यामत/ मिथ्या-पथ का कदर्थन मेरा कर्तव्य है वही मैंने किया है। खट्वाङ्गं नेय हस्ते न च रचिता लम्बते मुण्डमाला भस्माकं नैव शूलं न च गिरि नैव हस्ते कपालं । चन्द्रर्द्ध नैव मूर्धन्यपि वृषगमनं नेव कण्ठे फणीन्द्रं तं वन्दे त्यक्तदोषं भवभयमथनं चेश्वरं देवदेवम् ।।१४।। __अन्वयार्थ (यस्य) जिसके (हस्ते) हाथ में (खट्वांगं) हथियार विशेष (न अस्ति) नहीं है (यस्य) जिसके ( हदि) वक्षस्थल पर ( रचिता ) गूंथी हुई ( मुण्डमाला ) मुण्डमाला (न) नहीं (लम्बते) लटक रही है (यस्य) जिसके (भस्माङ्गम ) शरीर पर राख नहीं है (च) और (शूलम्) शूल (न अस्ति) नहीं है ( यस्य) जिसके साथ (गिरि दुहिता) हिमालय की पुत्रीपार्वती (न) नहीं है (यस्य हस्ते) जिसके हाथ में (कपालं) कपाल नर खोपड़ी (न) नहीं (अस्ति) है (यस्य ) जिसके (मूर्धनि ) मस्तक पर ( चन्द्रार्द्धम् ) अर्द्धचन्द्र (न) नहीं (अस्ति) है (कंठे) कण्ठ में ( फणीदं ) सर्प ( नैव) नहीं ही (अस्ति ) है (तम्) उस ( देवदेवम्) देवाधिदेव अरहन्त देव महोदव को
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy