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________________ २५८ : पंचस्तोत्र भावार्थ-अन्य लौकिक जन ब्रह्मा-विष्णु-महादेव का भिन्न-भिन्न रूप मानते हुए कहते हैं कि जो कमर में गूंज की रस्सी बाँधे हैं, हाथ में दण्ड, कमलण्डु लिये हैं वह ब्रह्मा हैं, जो सिर में जटा-जूट धारण किये हैं, लंगोटी लगाते हैं , अस्त्र हथियार लिये हैं तथा पार्वती को अपने साथ ( अङ्गि) में रखते हैं वे महादेव। रुद्र हैं तथा जिनके पास चक्र, शंख व गदा रहती है वे विष्णु हैं और लाल वस्त्र को धारण करते हैं वे बद्ध हैं। यहाँ श्री अकलंक स्वामी लिखते हैं इस प्रकार की जो मिथ्या अद्धा है वह असत्यार्थ है । ब्रह्मा-विष्णु-महादेव के ऐसे असत्यार्थ प्रतिपादक चिह्न बताना असत्यार्थ ही है क्योंकि सत्यार्थ ब्रह्मा, विष्णु आदि के ये लक्षण कभी नहीं हो सकते हैं। आचार्यश्री वादियों को पुकार कर कहते हैं—हे वादियों ! जो नग्न दिगम्बर हो, वीतराग जिनेन्द्र मुद्रा से युक्त हो, अपने आत्मस्वरूप रमण करते हैं ऐसे अरहंत ही ब्रह्मा हैं । वे अरहंत देव तीन लोक में शांति प्रदान करने से शंकर हैं/पहादेव हैं, वे अरहंत देव ही विष्णु हैं तथा ज्ञानियों के द्वारा अर्चित होने से अरहंत ही बुद्ध हैं, अन्य कोई ब्रह्मा, विष्णु, शंकर बुद्ध नहीं हो सकता । जो स्वयं दुःखी है, जो स्वयं कामी हो, स्त्री को साथ रखता है, जो स्वयं डरपोक हो, हथियार हाथ में लिये है वह हमारा महादेव शंकर कैसे हो सकता है ।। १२ ।। बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित बुद्धिबोधात् त्वंशङ्करोसिभुवनत्रय शंकरत्वात् ।। धातासि धीर शिवमार्ग विधेर्विधानात् व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ।। नाहङ्कार वशीकृतेन मनसा न द्वेषिणो केवलम् नैरात्म्यं प्रतिपद्य नश्यति जने कारुण्य बुद्ध्या मया । राज्ञः श्री हिमशीतलस्य सदसि प्रायो विदग्धात्मनः बौद्धोधान् सकलान् विजित्यसघटः पादेन विस्फालितः ।।१३।।
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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