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अकलंक स्तोत्र : २५१ रहे हैं । यदि हमें प्रश्नों का उत्तर सत्य दे सकते हैं तब तो आपका श्रद्धान ठीक है अन्यथा आपकी महादेव के प्रति उपासना एक अन्धविश्वास मात्र है।
आचार्यश्री के प्रश्न–१. क्या आपका महादेव ईश्वर है ? यदि हाँ तो फिर छिन्नलिंग वाला क्यों है ?
२. यदि वह भयरहित है तो हाथों में त्रिशूल धारण क्यों करता है ?
३.यदि वह सबका स्वामी/नाथ हैं तो भिक्षा से भोजन क्यों करता है ?
४.यदि यह साधु है तो अपने अर्धाङ्ग में स्त्री को धारण करने वाला क्यों है ?
५.वह साधु है तो पुत्रवान् कैसे है ? ६.यदि वह अजन्मा है तो आर्द्रा से उत्पन्न हुआ कैसे है ?
७.यदि वह सर्वज्ञ है तो फिर अपनी आत्मा की भीतरी दशा को क्यों नहीं जानता ?
सारांश यही कि ईश्वर होकर जो छिन्न लिंगवाला है, निर्भय होकर त्रिशूल धारण करता है, वही स्वामी होकर भिक्षा-भोजी है । साधु होकर स्त्री में आसक्त है, पुत्रवान् है, अजन्मा होकर आर्द्रा से उत्पन्न है, सर्वज्ञ होकर भी जो स्वयं की आत्मा की भीतरी दशा को जानने में असमर्थ है वह सचमुच अज्ञानी ही है । ऐसे अज्ञानी की आराधना कोई भी बुद्धिमान् हेयोपादेय बुद्धि का ज्ञाता कभी भी नहीं करेगा। ऐसा महादेव मुझ अकलंक का उपास्य हो ही नहीं सकता है।
मेरा सच्चा महादेव वही है जो ईश्वर है; छिन्नलिंग रहित है, निर्भय होने से शस्त्रादि जिसके हाथों में नहीं है, सबका स्वामी त्रिभुवननाथ है, तृप्त होने से भोजन की इच्छा से भी रहित है