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२५० ; पंचस्तोत्र है । अथवा जिसका ज्ञान त्रिकाल-त्रिगत् के पदार्थों को युगपत् प्रत्यक्ष जानता है । अन्य कोई लौकिक बुद्ध मुझे इष्ट नहीं है । ईशः किं छिन्नलिङ्गो यदि विगतभयः शूलपाणिः कथं स्यात् । नाथः किं भैक्ष्यचारी यतिरिति स कथं साङ्गनः सात्मजश्च ।। आर्द्राजः किन्त्वजन्या सकलविदिति किं वेत्ति नात्मान्तरायं । संक्षेपात्सम्यगुक्तं पशुपतिमपशुः कोऽत्र धीमानुपास्ते ।।६।।
अन्वयार्थ (यदि ) यदि महादेव ( ईशः ) ईश है, स्वामी या परमेश्वर है तो (छिन्नलिङ्ग) छिन्न लिंग वाला (किम् ) क्यों है ? (यदि) यदि (स:) वह ( विगतभयः) भयरहित (अस्ति) है (तर्हि) तो (शूलपाणि) त्रिशूल है हाथ में जिसके अर्थात् त्रिशूलधारी (कथं) कैसे ( स्यात् ) हो सकता है ? यदि वह (नाथ:) नाथ है, स्वामी है ( तर्हि ) तो( भैक्ष्यचारी ) भिक्षाभोजी (किम् ) क्यों (अस्ति) है ? यदि (सः) वह ( यति ) साधु या मुनि ( अस्ति ) है ( तर्हि ) तो ( सः । वह ( साङ्गनः) अमना सहित ( कथं ) कैसे ( स्यात् ) हो सकता है ? (च) और ( सात्मजः) आत्मज, पुत्र सहित, पुत्रवान् ( कथं ) कैसे ( स्यात् ) हो सकता है ? ( यदि ) यदि (सः ) वह ( आर्द्राजः) आर्द्रा से उत्पन्न हुआ है (तर्हि ) तो (अजन्मा) जन्म रहित (किम् ) क्यों ( अस्ति) है। यदि ( सः ) वह ( सकलवित्) सभी पदार्थों को जानने वाला है (तर्हि ) तो ( आत्मान्तरायम् ) अपनी आत्मा की भीतरी दशा को (किम् ) क्यों (न) नहीं ( वेत्ति) जानता है ( संक्षेपात् ) संक्षेप रूप से (सम्यक् ) भले प्रकार ( उक्तम् ) कहे गये (पशुपतिम् ) पशुपति को अर्थात् अज्ञानी को (कः) कौन ( अपशुः) ज्ञानी। बुद्धिमान (अन) यहाँ/इस संसार में (उपास्ते) उपासनाआराधना-पूजा करेगा अर्थात् कोई नहीं।
भावार्थ-आचार्यश्री अकलंक स्वामी महादेव के भक्तों से पूछ रहे हैं-तर्क की कसौटी पर कसकर वे समस्या का हल माँग