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२४६ : पंचस्तोत्र
महादेव शब्द का युक्ति-युक्त अर्थ है "देवानां अधिदेव महादेव'' देवों का देव, देवाधिदेव महादेव है । वह देवों का देव, देवाधिदेव महादेव अरहंत देव ही हो सकता है, अन्य कोई नहीं । क्योंकि महादेव वही है जो अठारह दोषों ( क्षुधातृषादि) से रहित है, अन्य कोई लौकिक महादेव, महादेव कभी नहीं हो सकता। सच्चे महादेव अरहन्त की मैं अकलंक वन्दना करता हूँ। दग्धंयेन पुरत्रयं शरभुवा तीव्रार्चिषा वह्निना यो वा नृत्यति मत्तवत् पितृवने यस्यात्मजो वा गुहः । सोऽयं किं मम शङ्करो भयतृषारोषार्तिमोहक्षयं कृत्वा यः स तु सर्ववित्तनुभृतां क्षेमङ्करः शङ्कर ।। २ ।।
अन्वयार्थ (येन) जिसने (शरभुवा ) कामरूप वाणों से उत्पन्न हुई (तीव्रार्चिषा) भयंकर ज्वालाओं वाली ( वह्निना) अग्नि के द्वारा (पुरत्रयं) तीन नगरों को (दग्धं) जलाया (वा) और (यः) जो (मत्तवत् ) उन्मत्त पुरुष के समान (पितृवने) श्मशान में (नृत्यति) नृत्य करता है (वा) और ( यस्य ) जिसका (आत्मज) पुत्र (गुहः) कार्तिकेय (अस्ति) है (किम् ) क्या (सः) वह ( अयम् ) यह ( मय ) मेरा (शङ्करः ) शङ्कर (स्यात् ) हो सकता है ? नहीं । (तु ) किन्तु (य:) जो ( भयतृषारोषार्तिमोहक्षयं कृत्वा) भय, तृषा, क्रोध, दुःख, मोह को क्षय करके (सर्ववित्) सर्वज्ञ हुआ है (तनुभृतां क्षेमङ्करः) जीवों का कल्याण करने वाला है (स) वह (शङ्करः ) शंकर ( अस्ति ) है ।
भावार्थ-लोक में शंकर उसे माना है जिसने कामरूप बाणों से उत्पन्न हुई भयंकर ज्वालाओं वाली अग्नि के द्वारा तीनों लोक को जला दिया है अर्थात् जो काम के वशीभूत है, जो श्मशान भूमि में पागल पुरुष की तरह नाचता है तथा जिसका पुत्र कार्तिकेय है । आचार्यश्री अकलंक स्वामी कहते हैं, जिसकी वासनाओं का अन्त नहीं हुआ है वह मेरा अलौकिक शंकर कभी