________________
!
अकलंक स्तोत्र के रचयिता अकलंक देव
भारत देश में मान्यखेट नाम का नगर था । उसके राजा शुभतुंग और रानी पद्मावती धर्मप्रिय थे । एक समय नगर में मुनिश्री का पदार्पण हुआ । अष्टान्हिका पर्व में चित्रगुप्त मुनिराज के दर्शनार्थ दोनों राजा रानी अपने दो पुत्रों सहित गये। दोनों ने आठ दिन के लिये ब्रह्मचर्य व्रत लिया और अपने पुत्रों को भी विनोदवश ब्रह्मचर्य व्रत दे दिया ।
समय पाकर दोनों पुत्र वयस्क हुए। दोनों के विवाह की तैयारियाँ की जाने लगीं। तभी पुत्रों ने पिताश्री से पूछा, यह सब इतना बड़ा आयोजन आप किसलिये कर रहे हैं ? तभी पिताश्री ने कहा बच्चों, आप लोगों की शादी की तैयारी कर रहा हूँ। बच्चों ने कहा - पिताजी ! आपने तो हमें ब्रह्मचर्य व्रत दे दिया था अब ब्याह कैसा ? पिताजी ने कहा -- वह तो विनोदवश दिया था। बच्चों ने कहा—पिताश्री धर्म और व्रत में विनोद कैसा ? ठीक है, यदि आपने विनोदवश भी दिया था तो उस व्रत को पालने में लज्जा कैसी ? पिताजी ने पुनः कहा- जैसा तुमने कहा वही सही। दोनों बालकों ने अखण्ड ब्रह्मचर्य स्वीकार किया |
दोनों भाइयों ने शास्त्राभ्यास में चित्त लगाया। इनके समय में बौद्धधर्म का बहुत जोर था । अतः इनके मन में बौद्ध तत्त्वों के जानने की इच्छा हुई । अतः वे बौद्धधर्म का अभ्यास करने के लिये अज्ञविद्यार्थी का वेश बनाकर महाबोधि नामक स्थान में बौद्धधर्माचार्य के पास आ
गये अध्ययन किया । बुद्धिमान बालकों पर जैन होने की शंका कर बौद्ध
·
गुरु ने उनकी परीक्षा की और मृत्युदंड देने के लिये उद्यत हुए। दोनों मठ से दौड़कर अर्द्धरात्रि में बाहर निकले और अपनी रक्षा का उपाय सोचने लगे। तभी निष्कलंक को उपाय सूझ पड़ा । उसने बड़े भाई से कहा
1