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२४० : पंच स्तोत्र
आपके गुणों की स्तुति करते हैं। तो भी वह पूर्णतया आपकी स्तुति करने में समर्थ नहीं हो पाते। ऐसी अवस्था में आचार्य वादिराज अपनी लघुता प्रकट करते हुए कहते हैं कि तब मुझ जैसा मन्दमति पुरुष आप जैसे जगद्वन्द्य परमात्मा की स्तुति करने में कैसे समर्थ हो सकता है ? अस्तु, आपके गुणों में जो अनुराग प्रकट किया है - भक्ति से इस स्तवनरूप पुष्पमाला को गूँथा है— सो उक्त गुणानुराग ही आत्महितैषी मोक्ष के इच्छुक हम जैसे पुरुषों का कल्याण करने वाला हो, अथवा मेरी आत्मोन्नति में सहायक हो ।। २५ ।।