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________________ भक्तामर स्तोत्र १९ प्रकाशित करते हैं, और सूर्य के तेज को मेघ रोक लेते हैं, पर आपके ज्ञान तेज को कोई नहीं रोक सकता ।। १७ ।। नित्योदयं दलितमोहमहान्धकारं गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम् । विभ्राजते तव मुखाब्जमनल्पकान्ति विद्योतयज्जगदपूर्वशशाङ्कबिम्बम् मोहान्धकार हरता रहता उगा ही, जाता न राहु- मुख में, न छुपे घनों से । अच्छे प्रकाशित करे, जग को सुहावे. अत्यन्त कान्तिधर नाथ ! मुखेन्दु तेरा ।। १८ ।। टीका- -भो जगदीश्वर । तव भगवतो । मुखाम्बुजं वक्त्रकमलं । अपूर्वशशांकबिम्बं किंचिन्नवचन्द्रमण्डलं । विभ्राजते शोभते । भ्राजंदीप्तावित्यस्य धातोः प्रयोगः । कथंभूतं तव मुखाब्जं ? नित्यमजस्त्रमुदयो यस्य तत् । ततु कदाचिदुदम् : पुनीतं हि महान्धकारं येन तत् । पुनः राहुवदनस्य गम्यं न । पुनः वारिदानां मेघानां न गम्यं । पुनरनल्पा प्रबला कांतिः रुक् यस्य तत् । पुनर्जगत्त्रैलोक्यं विद्योत्तयत् अपूर्वमेव शशांकबिम्ब पूर्वशशांक बिम्बम् ||१८|| अन्वयार्थ -- (नित्योदयम् ) हमेशा उदय रहने वाला ( दलितमोहमहान्धकारम् ) मोहरूपी अन्धकार को नष्ट करने वाला (राहुवदनस्य न गम्यम् ) राहु के मुख के द्वारा ग्रसे जाने के अयोग्य ( वारिदानां न गम्यम् ) मेघों के द्वारा छिपाने के अयोग्य ( अनल्पकान्ति) अधिक कान्ति बाला और ( जगत् ) संसार को ( विद्योतयत्) प्रकाशित करने वाला ( तव ) आपका (मुखाब्जम्) मुखीरूपी कमल (अपूर्वशशाङ्कबिम्बम् ) अपूर्व चन्द्रमण्डल ( विभ्राजते ) शोभित होता है । — ।। १८ ।। भावार्थ - हे भगवन् | आपका मुखकमल अपूर्व चन्द्रमा है, क्योंकि यह चन्द्रमा दिन में अस्त हो जाता है, पर आपका
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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