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एकीभाव स्तोत्र : २१९ विषये) इस विषय में ( यत्कर्तव्यं ) जो करना चाहिये उसमें ( देव एव प्रमाणम् ) आप ही प्रमाण हैं ।
भावार्थ हे भगवन् ! इस चतुर्गतिरूप संसार में अनादिकाल से भ्रमण करते हुए मैंने जो घोर दुःख भोगे हैं और भोग रहा हूँ । जिनका स्मरण करना भी शस्त्र घात के समान दुःखदाई है ।। उनको आप अच्छी तरह से जानते ही हैं । आप सिर्फ जानते ही नहीं हैं किन्तु सब के अकारण बन्धु और दयालु हैं । इसीलिये मैं भक्तिपूर्वक आपकी शरण में आया हूँ । ऐसी दशा में मुझे क्या करना चाहिए, यह आप ही समझ सकते हैं । मैंने अपनी दशा आपके सामने प्रकट करा दी है। प्रापदैवं तवनुतिपदैर्जीवकेनोपदिष्टैः,
पापाचारी मरणसम्ये सारमेयोऽपिसौख्यं । कः संदेहो यदुपलभते वासवश्रीप्रभुत्वं,
जल्पन् जाप्यैर्मणिभिरमलैस्त्वन्नमस्कारचक्रम् ।।१२।। मरण समय तुम नाम मंत्र जीवकतै पायो । पापाचारी श्वान प्रान तज अमर कहायो ।। जो मणिमाला लेय जमैं तुम नाम निरंतर । इन्द्र सम्पदा लहै कौन संशय इस अन्तर ।। १२ ।।
टीका-भो विभो ! तव परमेश्वरस्य नुतिपदैः स्तोत्रपदैः कृत्वा सारमेयोऽपि कुक्करोऽपि दैवं सौख्यं प्रापत् प्राप्तवान्, देवस्येदं दैवं । कथंभूतैः तव नुतिपदैः । मरण समये-मरणावस्थायां जीवकेन क्षत्रियवंशचूडामणि श्री सत्यंधर महाराज पुत्रेण उपदिष्टैः कर्णे जपीकृतैः । कथंभूता सारमेयः पापाचारी आजन्म पापमेवाचरतीत्येवंशीलः पापाचारी | भो देव ! यस्त्वन्नमस्कारचक्रं अमलैः मणिभिः जाप्यैः जल्पन् सन् शुद्धस्फटिकमणिमुक्ताफलरजतसुवर्णप्रबालचंदनागुरुसंभवमणिभः तव नमस्कारमंत्रं समभिजल्पन् वासवश्रीप्रभुत्वंसौधर्मादिलक्ष्मीसाम्राज्यं उपलभते प्राप्नोति । अत्र कः सन्देहः किमाश्चर्यमत्र ।