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________________ RAUTE... २१४ : पंच स्तोत्र भवतज सुखपद बसे काममद सुभट सँहारे। जो तुमको निरखंत सदा प्रियास तिहार तुम वचनामृतपान भक्ति अंजुलिसों पीछे । तिन्हें भयानक क्रूररोगरिपु कैसे छीवै ।। ८ टीका-भो देव ! रुजा कंटकाः गदलक्षणा कंटकाः पुरुषे । कथमिव निर्लुठन्ति पीडयन्ति । न निलुंठन्तीत्यर्थः । रुजा एवं कंटकाः ।। "रुगूजा चोपजाता थे रोगव्याधिगदामयाः इति हलायुधः । कथंभूत पुरुषं त्वां परमेश्वरं पश्यन्तं विलोकयन्तं । पुनः त्वद्वचनममृतं भक्ति । पात्र्या पिबन्तं तव वाक्यामृतं तव वचनं भक्तिरेव पात्री स्थाली भक्ति पात्री तथा पुन: कर्मारण्यादसमानन्दधाम प्रविष्टं । कर्मैव अरण्यं वने कारण्यं तस्मात् । असमं अतुल्यं यत् आनन्दधामहर्षमन्दिरं तत्र : प्रविष्टस्तं । कथंभूतं ? त्वां दुर्वार । यो हि स्मर: कामस्तस्य भदान् हरति तं । कीदृशं पुरुषं तवप्रसादास्त्वत्प्रसाद: त्वत्प्रसाद एव एका अद्वितीयाः भूमिर्यस्य स तं । कीदृशाः रुजा रोगा एव कण्टकाः क्रूराकारः क्रूराः कठिनाः आकारा येषां ते ।। ८ ।। अन्वयार्थ हे नाथ ! (कर्मारण्यात् ) कर्मरूपी वन से (असमानन्दधामप्रविष्टम् ) अनुपम सुख के स्थान मोक्ष में प्रविष्ट हुए तथा ( दुर्बारस्मरमदहरं) दुर्जय कामदेव के मदको हरण करने वाले आपको (पश्यन्तम्) देखने वाले और ( भक्तिपात्र्या) भक्तिरूपी कटोरोंसे ( त्वद्वचनममृतम् ) आपके वचनरूपी अमृत को पीने वाले अतएव ( त्वत्प्रसादैकभूमिम्) आपकी प्रसन्नता के स्थानभूत पुरुषको (क्रूराकाराः) भयंकर आकार वाले (रुजाकण्टकाः) रोगरूपी काँटे ( कथमिव?) किस तरह ( निलठन्ति) सता सकते हैं—पीड़ा दे सकते हैं ? अर्थात् नहीं दे सकते। भावार्थ हे भगवन् ! कर्मरूपी वन से निकल कर आपने अनुपम अनंत सुखस्वरूप आनन्दधाम को प्राप्त किया है तथा आप दुर्जय कामदेवके मदको हरण करने वाले हैं आपको देखने
SR No.090323
Book TitlePanchstotra Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Syadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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