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१८८ : पंचस्तोत्र द्वारा (गुणमणिनङ्मालिभिः) गुण रूप मणियों की माला के समूह से उपलक्षित ( मौलिभिः ) मुकुटों के द्वारा (न धार्यसे) धारण नहीं किये जाते ? अर्थात् सभी के द्वारा किये जाते हैं।
भावार्थ-हे भगवन् ! जिस प्रकार तोता तपोवन की शोभा बढ़ाता है उसी प्रकार आप भी धर्म के डायनी सोभा बढ़ाते हैं । जिस प्रकार कोयल अपनी मीठी आवाज से नन्दनवन की शोभा बढ़ा देती है उसी प्रकार आप भी अपने चरित्र से काव्य-रचना की शोभा बढ़ा देते हैं । अर्थात् जिस काव्य-रचना में आपका चरित्र लिखा जाता है, वह बहुत सुन्दर हो जाती है । जिस प्रकार भौंरा मालती के फूलों का रसास्वादन करता है, उसी प्रकार आप भी अनन्तचतुष्टयरूपी लक्ष्मी का रसास्वादन करते हैं । जिस प्रकार हंस कमलों के मन की शोभा बढ़ाता है उसी तरह आप भी श्रेष्ठ पुरुषों की कथाओं की शोभा बढ़ाते हैं । और जिस प्रकार अपने आपको अलंकृत करने वाले पुरुष मालाओं से शोभायमान मुकुटों को अपने सिर पर धारण करते हैं, उसी प्रकार अपने आपको उत्तम बनाने वाले मनुष्य आपको अपने मस्तक से धारण करते हैं अर्थात्, शिर झुकाकार प्रणाम करते हैं ।।२०।।
मालिनी शिवसुखमजर श्रीसङ्गमं चाभिलष्य
स्वमभिनियमयन्ति क्लेशपाशेन केचित् । वयमिह त वचस्ते भयतेवियन्त- 3111... | .. - स्तदुभयमपि शश्वल्लीलया निर्विशामः ।।२१।। कुछ जन चाह मुक्ति सुख एवं देवों की लक्ष्मी का संग। भाँति-भाँति के दुःख-समूह से नियमित करने अपने अंग ।। पर सदैव हम यहाँ आपके उपदेशों की महिमा सोच । अनायास ही मोक्ष स्वर्ग को पा लेते हैं निस्सङ्कोच ।। २१ ।।
टीका-अभिनियमयन्ति समंताद बध्नन्ति । केचित् पुष्पाः । के स्वमात्मानं केन क्लेशपाशेन । पञ्चाग्निसाधनादिबंधनविशेषेण । किं