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जिनचतुर्विशतिका स्तोत्र : १७९ जिनवर ! कोई मुग्ध कामिनी के, कटाक्ष के द्वारा विद्ध । हरि, हर ब्रह्मा को ही कहते, काम विजेता मल्ल प्रसिद्ध ।। किन्तु आपने विफल किये, सुर वधुओं के दृग वाण प्रहार । अत: आपको ही है, मन्थम-जयो कहने का अधिकार ।। १२ ।।
टीका-अवैति जानाति । कोऽसौ ? कश्चित् कोऽपि मुग्धो मन्दमतिक; सकान्तमपि कान्तायुक्तमपि मुकुन्दं विष्णुम् । अरविंदजं ब्रह्माणम् इन्दुमौलि शम्भुं त्रयमपि किंविशिष्टमवैति ? कन्तोः कामस्य मल्लं प्रत्यनीकं न चैवं कुत एतदित्याहयतो हि हे जिनराजमल्ल ! तस्य कन्तोस्त्वमेव विजयी विजेता न मुकुन्दादिः मुकुं मोक्षं द्युति खण्डयतीति मुकुन्दस्तं मुकुं किं विशिष्टस्त्वं मोघीकृता विफलीकृतास्त्रिदशयोषितां देवीनामपाङ्गपाता नयनान्तक्षेपा येन स तथोक्तः ।।१२।। ___अन्वयार्थ-(जिनराज) हे जिनेन्द्र ! (कश्चित् मुग्धः) कोई मूर्ख (कन्तोः ) कामदेव के विषय में (मुकुन्दम् ) श्रीकृष्ण ( अरविन्दजम्) ब्रह्मा और (इन्दुमौलिम्) महादेव को ( सकान्तम् अपि) स्त्रियों से सहित होने पर भी ( मल्लम् ) मल्ल ( अवैति ) मानता है। किन्तु ( मोघीकृतत्रिदशयोषिदपाङ्गपातः) व्यर्थ कर दिया है देवांगनाओं का कटाक्षपात जिनने ऐसे ( त्वम् एव ) आप ही (तस्य) उस काम को (विजयी) जीतने वाले (मल्लः) शूरवीर हैं ।।१२।।
भावार्थ-हे भगवन् ! कोई अज्ञानी जीव कहते हैं कि श्रीविष्णु ने काम को जीता था, कोई कहते हैं कि ब्रह्मा ने जीता था और कोई कहते हैं कि महादेव ने जीता था, पर उनका यह कहना मिथ्या है, क्योंकि ये तीनों ही देवता देव-अवस्था में भी स्त्रियों से सहित थे । जो काम को जीत लेता है—काम विकार से रहित होता है उसे स्त्री रखने की क्या आवश्यकता ? परन्तु आपके ऊपर मनुष्य-स्त्रियों की क्या बात, देवांगनाएँ भी अपना असर नहीं डाल सकी, इसलिये कामदेव के सच्चे विजेता आप ही हैं ।।१२।।