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जिनचतुर्विंशतिका स्तोत्र १६३
पूर्वक मन्त्र की आराधना करना प्रारंभ कर दिया। एकाग्रता से मन्त्र जाप्य के प्रभाव से ब्राह्मी देवी प्रकट होकर राजकुमार से कहने लगींदेवी – रे बालक ! तुमने मुझे क्यों स्मरण किया है ?
बालक - माँ, मैं मूर्ख हूँ, ज्ञान प्राप्ति के लिये मैंने आपका स्मरण किया हैं । मेरा अज्ञान दूर करो ।
देवी 'तथास्तु' कहकर अपने स्थान को चली गई ।
भूपाल पर विद्या इस तरह प्रसन्न हुई कि वे संस्कृत, व्याकरण. न्याय- अलंकार आदि के धुरन्धर विद्वान् हो गये। काशी नगर में उनकी बराबरी करने वाला कोई विद्वान् नहीं रहा था। वे महाकवि के रूप में प्रसिद्ध हुए । “भूपाल चतुर्विंशतिका" स्तोत्र की रचना कर आपने जिनदर्शन की महिमा का अपूर्व फल जनमानस के स्मृति पटल पर अंकित करने का महाप्रयास किया है।
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