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विषापहारस्तोत्रम् : १६१
प्रभु के चरण कमल में नयो, जन्म कृतारथ मेरी भयो । कर युग जोड़ नवाऊँ शीश, मुझ अपराध क्षमौ जगदीश ||३८||
सत्रह सौ पन्द्रह शुभ यान, नारनौल तिथि चौदस जान । पढ़े सुने तहाँ परमानन्द, कल्पवृक्ष महा सुखकन्द ।। ३९ ।। अष्ट सिद्धि नव निधि सो लहै. अचलकीर्ति आचार्य कहें। याको पढ़ो सुनो सब कोय, मनवांछित फल निश्चय होय ||४०||
दोहा
भय भञ्जन रञ्जन जुगत, विषापहार अभिराम । संशय तज सुमिरो सदा, श्रीजिनवर को नाम ||४१ ||
इति श्रीविषापहार स्तोत्र भाषा सम्पूर्ण