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विपाषहार स्तोत्र भाषा
दोहा
आतम लीन अनन्त गुण, स्वामी ऋषभ जिनेन्द्र । नित प्रति वन्दित चरण युग. सुर नागेन्द्र नरेन्द्र ||१ ||
चौपाई
विश्व सुनाथ विमल गुण ईश, विरहमान वन्दों जिन वीस । गणधर गौतम शारदमाय वर दीजैं मोहि बुद्धि सहाय ।। २ ।। सिद्ध साधु सत गुरु आधार, करूँ कवित्त आत्म उपकार । विषापहार स्तवन उद्धार, सुक्ख औषधी अमृतसार ।। ३ ।। मेरा मंत्र तुम्हारा नाम, तुम ही गारूड़ गरुड़ समान । तुम सम वैद्य नहीं संसार. तुम स्याने तिहुँ लोक मझार ।। ४ ।। तुम विषहरण करन जग सन्त, नमो नमो तुम देव अनन्त । तुम गुण महिमा अगम अपार, सुरगुरु शेष लहँ नहिं पार ॥ ५ ॥ तुम परमातम परमानन्द, कल्पवृक्ष यह सुख के कन्द । मुदित मेरु नय मण्डित धीर. विद्यासागर गुण गम्भीर ।। ६ ।। तुम दधिमथन महा वरवीर, संकट विकट भय भञ्जन भीर । तुम जगतारण तुम जगदीश, पतित उधारण विश्वं बीश ।। ७ ।। तुम गुणमणि चिन्तामणि राश. चित्रवेलि चितहरण चितास । विघ्नहरण तुम नाम अनूप, मंत्र यंत्र तुमही मणिरूप ।। ८ ।। जैसे वज्र पर्वत परिहार, त्यों तुम नाम जु विषापहार। नागदमन तुम नाम सहाय विषहर विषनाशक क्षणमाय ।। ९ ।। तुम सुमरण चिंते मनमोहि, विष पीवे अमृत हो जाहिं । नाम सुधारस वर्षे जहाँ, पाप पङ्कमल रहें न तहाँ ।। १० ।।
ज्यों पारसके परसे लोह, निज गुण तज कंचनसम होह ।
त्यों तुम सुमरण साधे सूंच नीच जो पावै पदवी ऊँच ।। ११ ।।
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