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विषापहार के रचयिता
धनञ्जय कवि
धनञ्जय कवि (७वीं, ८वीं शती) द्विसन्धान महाकाव्य के प्रणेता परम जैन कविराज का नाम जन-जन में प्रसिद्ध है । आपने १. द्विसन्धान २. विषापहारस्तोत्र ३. धनञ्जय नाममाला ये तीन ग्रन्थ बनाये हैं । द्विसंधान काव्य के प्रत्येक पद्यके दो अर्थ होते हैं । पहला रामायण से सम्बद्ध और दूसरा महाभारत से । इसी कारण इस काव्य को राघव पाण्डवीय भी कहते हैं । द्विसन्धान काव्य के अन्तिम पद्य से यह स्पष्ट होता है कि आपकी माता का नाम श्रीदेवी, पिता वासुदेव और गुरु का नाम दशरथ था ।
आपकी एक महान् रचना धनञ्जय नाममाला जो एक महत्त्वपूर्ण शब्दकोष हैं। प्रस्तुत विषापहारस्तोत्रमें भगवान् ऋषभदेव की स्तुति की है। यह स्तुति गंभीर, प्रौढ़ और अध्यात्मसे पूर्ण अनूठी रचना है। यह ग्रन्थ कवि की चतुराई से भरा हुआ है। इसमें शब्दों का माधुर्य, अर्थों का गांभीर्य और अलंकार की छटा यत्र-तत्र देखने को मिलती है ।
विषापहार स्तोत्र की रचना का मुख्य हेतु उनके जीवन की अपूर्व घटना का इतिहास उसके पीछे है - कविराज धनञ्जय जिनपूजन में लीन थे। उनके सुपुत्र को सर्प ने इस लिया । घरसे कई बार समाचार आनेपर भी वे निस्पृह भावसे पूजनमें पूर्णतया तन्मय रहे। एकलौते पुत्र की गंभीर स्थिति देख कुपित होकर बच्चे को लेकर ही उनकी धर्मपत्नी जिनमन्दिरजी में आ गई और उसी मूर्च्छित अवस्था में पुत्रको पतिके सामने डाल दिया । पूजासे निवृत्त हो धनञ्जयने विचार किया। जिनभक्ति का प्रभाव यदि आज नहीं दिखाया तो लोगोंकी श्रद्धा धर्मसे उठ जायगी । तत्काल विषापहार स्तोत्रकी रचना करते हुए भक्ति में लीन प्रभु से कहने लगे - हे देव, मैं यह स्तुति करके आपसे दीनतापूर्वक कोई वर नहीं माँगता हूँ; क्योंकि आप उपेक्षा रखते हैं । जो कोई छाया पूर्ण वृक्ष का