SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महायड सिंह विराउ पजुग्णचरित (2) विवाह समाज-शास्त्र के अनुसार स्त्री-पुरुष का पारस्परिक मिलन नैसर्गिक एवं प्राकृतिक है। इस स्थिति को जब से मान्य ठहराया गया, तभी से उसे 'विवाह' की संज्ञा प्रदान की गयी। मनुस्मृति में 8 प्रकार के विवाहों की चर्चा की गयी है। और उन्हें ही पारिवारिक जीवन की आधार-शिला बताया गया है। रॉबर्ट एच० ताइ के अनुसार विवाह उन स्पष्टत: स्वीकृत संगठनों को प्रकट करता है, जो इन्द्रिय-सम्बन्धी सन्तोष के उपरान्त भी स्थिर रहतर है। वस्तुत: वहीं पारिवारिक-जीवन की आधारशिला है।' जिनसेनाचार्य ने विवाह को एक धार्मिक-कृत्य माना है। उनका कथन है कि मानव-जीवन की परिपूर्णता उसके विवाह एवं सन्तानोत्पत्ति के द्वारा ही हो सकती है। अ. विवाह-प्रकार प०च० में धर्म, अर्थ एवं काम इन तीन पुरुषार्थों को दृष्टि में रखते हुए कवि ने विवाह को आवश्यक बतलाया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में कवि ने तीन प्रकार के विवाहों के उल्लेख किये हैं (क) स्वयंवर-विवाह (ख) कन्यापहरण विवाह, एवं (ग) धर्मविधिपूर्वक पाणिग्रहण (क) स्वयंवर-विवाह यह परम्परा यद्यपि रामायण एवं महाभारतकालीन थी, किन्तु परवर्ती युगों में भी छिटपुट रूप से चलती रही। प०च० के उल्लेख से विदित होता है कि कवि के समय में भी कुछ राजघरानों में स्वयंवर-प्रथा का प्रचलन था। जब कन्या युवावस्था को प्राप्त हो जाती थी, तब पिता दूर-दूर के राजाओं को आमन्त्रित कर एक निश्चित समय पर स्वयंवर का आयोजन करता था। उस समय कन्या हाथ में वरमाला लिए हुए स्वयंवर-मण्डप में प्रवेश करती एवं अपनी इच्छानुसार योग्य वर के गले में उसे डाल देती थी और शुभ-लग्न में विवाह-संस्कार सम्पन्न किया जाता था। इसी प्रकार की स्वयंवर-प्रथा के उल्लेख जातक-कथाओं, जैनागम-साहित्य तथा समराइच्चकहा' एवं यशस्तिलकचम्पू में भी मिलते हैं। (ख) कन्यापहरण-विवाह इस प्रकार का विवाह धार्मिक विधिपूर्वक या वर-कन्या के परिवारों के पारस्परिक समझौते के माध्यम से नहीं होता, अपितु वर-कन्पा की स्वेच्छा से ही होता है। इसमें अवसर पाकर वर कन्या के संकेत अथवा अपनी सुविधानुसार अपहरण कर विवाह कर लेता है। प्राचीन-साहित्य में इस प्रकार के अनेक उदाहरण मिलते हैं। प०च० में कन्या-हरण करके उससे विवाह करने के भी उल्लेख मिलते हैं । कवि सिंह ने कृष्ण रुक्मिणी के विवाह का वर्णन इसी प्रथा के अन्तर्गत किया है।। (ग) परिवार द्वारा विवाह वरान्वेषण की प्रथा का उल्लेख भी प०च० में मिलता है। योग्य वर का पता चलते ही तथा वैवहिक-सम्बन्ध की वात निश्चित हो जाने पर वधू-पक्ष के लोग वैभव-सम्पन्नता के साथ अपनी कन्या को लेकर वर-पक्ष के 1. मनुस्मृति. 3:20-211 2. मेरिज उिनोट्स होस इनेवीगेकली सेंगांड मूनियनस् विच सिस्टर बिबांड मेटिसजेक्शन एण्ड इस कैम टू अंडरलाइ फैमिली। - मेरिज इन एसाइक्लोपीडिया ऑफ सोपाल साइन्सेस, बाल 10,301461 3. आधo. 3563-644. T० : 613191 5. वहीद6:3:11-12| 6. व्ही. 6:481 7. जातक 5/1261 8. नयाधम्मकहा, 116122-1251 9. समक-4, पृट 3391 10. स्वास्तिलकट, 79। 11. पचo. 2:15:8 |
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy