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प्रस्तावना
के भी उल्लेख उपलब्ध हैं। ये लोग विद्याओं की साधना करते हुए अपना जीवन व्यतीत करते थे । ( आ ) संस्कार
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भारतीय पारिवारिक जीवन में संस्कारों का विशेष महत्व होता है। परिवार की विविध प्रवृत्तियाँ इन्हीं संस्कारों द्वारा विकसित एवं संचालित होती हैं। वैदिक परम्परा में इन संस्कारों की संख्या सोलह मानी गयी है। जैन - परम्परा में प्रारम्भ में तो इन संस्कारों का कोई विशेष महत्त्व नहीं था, किन्तु आगे चलकर संभवत: वैदिक संस्कारों से प्रभावित होकर ही जैन कवियों ने भी उनमें से कुछ संस्कारों का वर्णन अपने नायक के वर्णन-प्रसंगों में उपस्थित किये हैं ।
महाकवि सिंह ने प्रद्युम्न के जन्म-प्रसंग में निम्न संस्कारों की चर्चा की है- 1. गर्भ', 2. पुंसवन 2, 3. सीमन्तोनयन, 4. छट्ठी ( नामकरण ) 1, 5. शिक्षारम्भ 6 विवाह 7, वानप्रस्थ एवं 8. सन्यास * । उक्त संस्कारों में से दोहला एवं छट्ठी के संस्कार प्राकृत एवं अपभ्रंश जैन साहित्य में प्रचुर रूप से उपलब्ध होते हैं। आचार्य देवेन्द्रगणि ( 1141 ई०) ने चम्पानरेश दधिवाहन के प्रसंग में लिखा है कि उनकी रानी पद्मावती को दोहला होता है और उसी की प्रेरणा स्वरूप वह श्रेष्ठ शुभ्र हाथी पर पुरुष की वेषभूषा धारण कर वन विहार के लिए निकलती है।" अपभ्रंश में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है ।
आचार्य देवेन्द्रगणि मे अपने एक अन्य प्राकृत खण्डकाव्य "अगडदत्तचरियं" में भुजंगम चोर की बहन वीरमति
के द्वारा ठगने प्रयत्न समय अगडदत्त से कहलवाया है - "जो जग्गइ परछट्ठि सो किं निय छद्धिं सुयई?"
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अर्थात्---जो दूसरे की छुट्टी की रात्रि में भी स्वयं जागता रहता है, वह क्या अपनी ही छट्ठी के दिन सोता रहेगा? प्राचीन परम्परा के अनुसार यह छट्ठी अथवा नामकरण 11वें दिन अथवा 101वें दिन अथवा दूसरे वर्ष में किए जाने का विधान है ||
दसवीं सदी के समाज छट्ठी के विषय में जो तत्कालीन मान्यता प्रचलित थी, कवि सिंह ने उसे ही व्यक्त किया है। कवि के उल्लेख से विदित होता है कि नामकरण संस्करण की विविध दीर्घ विधियाँ घटाकर छठे दिन कर दी गयीं थीं और वह छठे दिन होने के कारण ही उस संस्कार का नाम छट्ठी पड़ गया था । बिहार प्रान्त में वर्तमान काल में जन्म के छठे दिन ही रात्रि जागरण कर बच्चे का नामकरण किया जाता है। उसका मूल कारण, यह मान्यता है कि जन्म काल में शिशु को बुद्धि का वरदान नहीं मिलता, वह तो उसे छठे दिन की रात्रि में ही प्राप्त होता है। अतः उस समय जो जागेगा, वही बुद्धि पायेगा और जो सोयगा सो वह खोयेगा ।
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(1) शिक्षा-संस्कार
प०च० में शिक्षा - संस्कार का उल्लेख मिलता है । 12 बालक के पाँच वर्ष के हो जाने पर उसे शिक्षा प्राप्ति हेतु एक प्रवीण पण्डित की नियुक्ति की जाती थी 117 पुस्तकी शिक्षा के साथ-साथ बालकों को अश्व - विद्या, राज-विद्या, ज्योतिष विद्या तथा कृषि विद्या का ज्ञान भी कराया जाता था । प०च० में कुमारप्रद्युम्न को ये सभी शिक्षाएँ प्रदान की गयी थीं 114
2. वह 3/14:41 3. वही 3:1275 1 4. 4, 3:13/11| 5. वही 27:3:2-3 6. बी० 14:4-71 7 वहीं, 15:21/13। 9. करकंडचरिर प्रारम्भिक भग 10. अगदम्बरियं गाथा सं0 148 11. भारतीय संस्कृति पृ० 94 901 13. वही 713:5 14. वही 9/13:7-91