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महाँ पहुँचले थे तथा बड़ी धूमधाम के साथ वर पक्ष के यहाँ ही विवाह सम्पन्न होता था । प्रद्युम्न और दुर्योधन की पुत्री उदधिकुमारी एवं अन्य कन्याओं के विवाह इसी प्रकार के सम्पन्न हुए दिखाये गये हैं। प०च० में प्रद्युम्न और भानु का विवाह अपनी ममेरी बहिन के साथ भी सम्पन्न होने की चर्चा आई हैं। इस प्रसंग को देख कर यह विदित होता है कि कवि के समय में ममेरे- फुफेरे भाई-बहिन के वैवाहिक सम्बन्ध हुआ करते थे 7वीं, 8वीं, 9वीं एवं 10वीं सदी में लिखित संस्कृत - प्राकृत एवं अपभ्रंश - साहित्य में भी इसी प्रकार के अनेक उदाहरण मिलते हैं । प०च० में बहु-विवाह (पोलीगेमी ) प्रथा के भी प्रचुर प्रमाण मिलते हैं। प्राप्त उल्लेखों के अनुसार निम्न राजाओं के बहु विवाह हुए थे प्रद्युम्न का विवाह 500 कन्याओं के साथ हुआ था । इसी प्रकार कृष्ण' और राजा कालसंवर की 360-360 रानियाँ थीं। कवि का यह वर्णन नवीन नहीं है । पूर्ववत्ती - साहित्य में भी बहु-विवाह के अनेक प्रमाण मिलते हैं। वरांगचरित में भी बहु-विवाह के अनेक उल्लेख मिलते हैं ।'
राजकुमारियाँ कभी-कभी अपने मनोनुकूल पति को प्राप्त करने के लिए तपस्या भी करती थीं। विद्याधर मरुदुद्वेग की पुत्री 'रति' ने राजकुमार प्रन की प्राप्ति के लिए की भी प्रतीत होता है कि इस प्रसंग में कवि को महाकवि कालिदासकृत 'कुमारसम्भव' महाकाव्य से प्रेरणा मिली होगी। जिसके पंचम सर्ग में शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। जिस प्रकार पार्वती की तपस्या सफल हुई, उसी प्रकार प०च० में रति की तपस्या भी सफल बतलाई गयी है ↓
प्रस्तावना
आ. वैवाहिक रीति-रिवाज
महाकवि सिंह ने प०च० में विवाह विधि का सर्वांगीण वर्णन किया है। उसके अनुसार विवाह का शुभ लग्न निर्धारण, आमन्त्रण, मण्डपाच्छादन, ब्राह्मण - भोज, मंगलवादन, मंगलगान महिलाओं के गीत एवं नृत्य, वरवधू का अभिषेक एवं अलंकरण, पारस्परिक मुखावलोकन, अन्तर्वस्त्र परिवर्तन, पाणिग्रहण संस्कार, दान-दहेज आदि विविध रीति-रिवाज़ों का सुन्दर वर्णन किया गया है। यहाँ संक्षेप में उन पर प्रकाश डाला जा रहा है...
(क) शुभ लग्न निर्धारण
विवाह - क्रिया सम्पन्न कराने के लिए सर्वप्रथम ज्योतिषियों द्वारा शुभ लग्न दिखलाया जाता था । प्रद्युम्न के विवाह के लिए ज्योतिषी ने शुभयोग में अशुभ निरोधक-नक्षत्र में लग्न बतलाया है।" हर्षचरित में भी विवाह के लिए शुभ मुहुर्त्त निर्धारित करने का उल्लेख हैं । 10
(ख) आमन्त्रण
में
लग्न के निचित हो जाने पर सभी सम्बन्धियों एवं इष्ट मित्रों को निमन्त्रण-पत्र प्रेषित किये जाते थे । प०च० प्रद्युम्न के विवाह के उपलक्ष्य में देश-विदेश के राजाओं को आमन्त्रित करने के उल्लेख मिलते हैं। इस अवसर पर श्री कृष्ण ने अहंगमाल, चंग, कण्ड, डेसर, कच्छ, सौराष्ट्र, गज्जण एवं विद्याधर- श्रेणी के राजाओं को आमन्त्रित किया था । "
(ग) मण्डप
महाकवि सिंह ने ५०च० में मण्डप की सजावट का वर्णन बड़े विस्तार के साथ किया है। मण्डप का निर्माण
1. प ० 14/5/121 2. वही 15/1101 3. वही 20:40. INT. 9. नहीं 14:2:101
14/891 4. Pota 14/5/111 5. उही० 12/13/5 1 6. वहीं, 4:277 7 वच, 108 10. हर्षचरित 4 पृ 1451 11.00 14:5:3-101