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महाकर मिह यिसपना चरित
(7) सामाजिक चित्रण ___व्यक्ति के जीवन में सामाजिकता का अत्यन्त महत्व है। समाज के बिना व्यक्ति की वैयक्तिक स्थिति सम्भव नहीं। समाज में रहकर ही वह उन्नति के पथ पर अग्रसर होता हुआ अपने जीवन को परिष्कृत एवं सुसंस्कृत बनाता है और शाश्वत-सुख की आनन्दानुभूति का अनुभव कर सकता है। इस सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए महाकवि सिंह ने पश्च० में सामाजिक स्थिति पर अच्छा प्रकाश डाला है। पूर्वगत भारतीय सामाजिक परम्परा के अनुसार कवि-कालीन भारत भी विभिन्न वर्गों एवं जातियों में विभक्त था। कवि ने परम्परा-प्राप्त 'चार वर्णों ।। के उल्लेख किये हैं, जिनमें कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र परिगणित हैं। (अ) वर्ण-व्यवस्था
(1) ब्राह्मण
वैदिक-युग से ही सभी वर्गों में ब्राह्मणों को श्रेष्ठ बतलाया जाता रहा है। महाकवि सिंह के समय में भी उनकी यह श्रेष्ठता अखण्ड-रूप में बनी हुई थी। कवि ने ब्राह्मणों को वेदों का ज्ञाता, चतुर्वेदों का घोष करते हुए यज्ञ करने वाला एवं सन्ध्या-तर्पण करने वाला कहा है। विवाह आदि शुभ-कार्यों के पूर्व ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता था। भले ही ब्राह्मणों की श्रेष्ठता बनी रही हो. किन्तु कवि ने कुछ ऐसे संकेत भी किये हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि उनकी जीवन-धारा में कुछ परिवर्तन होने लगा था। कवि ने एक स्थल पर उन्हें 'कृषि-कार्य' करनेवाला" भी कहा है और बतलाया है कि वह किसी का दान नहीं लेतः था। कवि ने स्पष्टरूपेण बतलाया है कि ब्राह्मण भी कृषक का कार्य कर सकता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि 12-13वीं सदी में ब्राह्मण-वर्ग विद्याध्ययन के साथ ही साथ अपनी आजीविका के लिए खेती भी करने लगे थे।
प्रस्तुत ग्रन्थ में कवि ने ब्राह्मणों को उनके कार्यों के अनुसार विभिन्न प्रसंगों में विविध नामों से सम्बोधित किया है। यथा—द्विज', बंभण', अग्गहारुण एवं विप्र।। । यशस्तिलकचम्पू में भी ब्राह्मणों के इसी प्रकार के अनेक नाम मिलते है।
(2) क्षत्रिय
पन्च० में अनेक राजाओं के उल्लेख मिलते हैं। किन्तु 'क्षत्रिय' शब्द के सम्बन्ध में विशेष उल्लेख नहीं मिलते। न ही उनकी सामाजिक-स्थिति पर ही प्रकाश डाला गया है। हॉ, कुण्डिनपुर के राजा भीष्म को अपने 'क्षात्र-धर्म को पालने वाला क्षत्रिय राजा' कहा है। उनके इस कथन से प्रतीत होता है कि क्षत्रिय जाति प्रशासन एवं सुरक्षा आदि का कार्य कुशलतापूर्वक करती थी। अलबेरुनी (11वीं सदी का पूर्वार्द्ध) ने भी लिखा है कि क्षत्रिय-जाति लोगों पर शासन एवं उनकी सरक्षा करती थी।
(3) वैश्य
भारतीय-वर्ण-व्यवस्था में वैश्यों का तीसरा स्थान था। यदि ब्राह्म1 धार्मिक कार्यों एवं क्षत्रिय राजनैतिक कार्यों के द्वारा सामाजिक-व्यवस्था बनाये रखते थे. तो वैश्य अपनी कुशाग्र बुद्धि तथा कृषि एवं वाणिज्य के १. १०42. 04/101 2. वहीं 4/14/14। 3. वही 611|4. बड़ी, 5:131015. ako21.640 4161। वही.. 4:16/9: ४. वही०, 4/15/21 9. वही०, 414121 10. वही 4514/12। | उही। 120/111 12. शसि जनरलप्त, प-58,105, 10, 1261 13. प० २०. 231213 14. अलरेनीज़ इंडिया, पृ. 1361