SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 92] पनि विरमगारर जिनसेन (प्रथम) ने अपने संस्कृत हरिवंशपुराण की रचना की थी। महाकवि हरिषेण ने अपने कथा-कोष की रचना भी यहीं बैठकर की थी। इस प्रकार बम्हणवाड निश्चित रूप से 7वीं सदी से जैन विद्या का केन्द्र रहा था, जो आगे कई शताब्दियों तक जैन लेखकों के लिए प्रेरणा केन्द्र बना रहा। प्रस्तुत प०च० की रचना भी वहीं के एक जैन-विहार में की गयी। मेघकूडपुर (7/9/1) यह कोई पौराणिक नगर प्रतीत होता है, जो किसी विद्याधर-क्षेत्र में स्थित धा। कवि सिंह के अनुसार इसी नगरी के राजा कालसंवर एवं रानी कनकमाला ने प्रद्युम्न का 16 वर्षों तक पालन-पोषण किया था। रत्नसंचयपुर (8/20/3) महाकवि जिनसेन ने इस नगर का उल्लेख किया है। उनके अनुसार विदेह क्षेत्र के मंगलावती देश में यह नगर स्थित था। इसकी पहचान अभी तक नहीं हो सकी। रथनूपुर-चक्रवाल (2/317) यह विद्याधरों का एक नगर-राज्य था। जैन-भूगोल के अनुसार यह विजयार्द्ध-पर्वत की दक्षिण श्रेणी का 22वां नगर है। वर्तमान खोजों के अनुसार दक्षिणी बिहार के चाइबासा के आसपास इसकी अवस्थिति मानी जा सकती है। महाभारत में इसका उल्लेख नहीं मिलता है। वडपुर (6/18/2) 'वडउर' नामक नगर प्राचीन साहित्य में उपलब्ध नहीं होता। कवि सिंह के उल्लेख के अनुसार इसे अयोध्या के समीप ही कहीं होना चाहिए। हमारा अनुमान है कि वर्तमान बटेश्वर ही (जो कि आगरा जिले में यमुना नदी के किनारे स्थित है) प०च० का वडउर होना चाहिए। बटेश्वर जैन एवं हिन्दू दोनों संस्कृतियों का प्रधान केन्द्र रहा है। सालिग्राम (4/14/9,5/17/7) इस नगर की चर्चा अन्यत्र देखने में नहीं आती। महाकवि सिंह ने इसे मगध-जनपद में अवस्थित बतलाया है। प्रतीत होता है कि यह वर्तमान राजगीर अथवा बिहारशरीफ (बिहार) के आसपास कोई स्थल रहा होगा। कवि के वर्णन के अनुसार यह स्थान वही प्रतीत होता है, जो इन्द्रभूति- गौतम का आश्रम-रथल था। इसकी पहचान वर्तमान सिलाब' (बिहार) से की जा सकती है। सिंहपुर (7/8/9) प०च० में सीहउर की स्थिति विजयाद्ध की दक्षिण श्रेणी में बतलाई गयी है। जिनसेन ने आदि पुराण में विदेह क्षेत्र के गन्धला देश की अमरपुरि के समान ही इस नगर को बताया है। जैन-साहित्य में सिंहपुर की पहचान वर्तमान सारनाथ (वाराणसी) से की जाती है। ग्राम (1/7/3,4/14/9) महाकवि सिंह ने देश एवं नगरों के साथ-साथ ग्रामों तथा उनके अनेक रूपों की भी चर्चा की है। कवि सिंह 1. जैसा०३०, पृ0 116-1171 2. वही0। 3. आठपुर. 7:14। 4. वही0 55203/
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy