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________________ प्रस्तावना [91 उत्तर श्रेणी में कही गयी है ।' कनखल (5/17/9) महाभारत के अनुसार कणखल एक पवित्र तीर्थ स्थल है। यहाँ स्नान करके तीन रातों तक उपवास करने वाला व्यक्ति अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है । कवि सिंह ने कणखल के वर्णन प्रसंग में वहाँ प्रवाहमान गंगा जल की पवित्रता की सूचना दी है। इससे स्पष्ट है कि वर्तमान कनखल की ओर कवि का संकेत है । कुरुखेत्त (5/17/9) महाभारत के अनुसार सरस्वती एवं दृषद्वती नामक नदी का वीथ अपनी तपस्या से इस क्षेत्र को पवित्र बनाया था।' कुंडिनपुर (2/11/10, 9/11/9 ) महाभारत के अनुसर यह विदर्भ देश की राजधानी था।' अर्द्धमागधी आगम - साहित्य में भी विदर्भ देश के प्रमुख नगर के रूप में इसकी चर्चा आती है। इस कुण्डिनपुर की पहचान विदर्भप्रदेश के कौण्डवीर्य से की गयी है । प०च० में भी इसकी अवस्थिति कोशल के दक्षिण प्रदेश में की गयी है, जो कि महाभारत के उक्त उल्लेख से मेल खाती है। द्वारका (वारमई, दारामई, 1/9/7, 1/12/2, 1/14/ 1 ) पच० में इसका वर्णन विस्तारपूर्वक हुआ है। उनके अनुसार इसकी अवस्थिति सौराष्ट्र देश में मानी गयी है। महाभारत के अनुसार इसे रैवतक - पर्वत से सुशोभित रमणीय कुशस्थली बताया गया है, जहाँ पर जरासन्ध से बैर हो जाने पर समस्त यादव श्रीकृष्ण की आज्ञापूर्वक यहाँ आकर बस गये थे। जैन साहित्य, विशेष रूप से उत्तराध्ययन सूत्र की सुखबोधा टीका तथा जैन- हरिवंश एवं विविध पाण्डवपुराणों में इसकी विस्तृत चर्चाएँ आयी हैं। वर्तमानकाल में यह गुजरात- प्रदेश के पश्चिमी - समुद्री किनारे पर अवस्थित है । पुण्डरीकणी (4/10/9, 14/9/10) प०च० में इसकी अवस्थिति पूर्व- प्रदेश के पुष्कलावती देश के अन्तर्गत बतलायी गयी है। अर्द्धमागधी आगम-साहित्य के अनुसार शत्रुंजय का ही अपरनाम पुण्डरीक है। जैन मान्यतानुसार यहाँ पाण्डव एवं अनेक ऋषियों ने मुक्ति-लाभ किया था। आचार्य जिनसेन ने इसे विदेह की एक नगरी माना है । ' भणवाड ( 1/4 / 8) स्कन्दपुराण को अनुसार ब्राह्मणवाड एक प्राचीन देश था, जिसमें साढ़े तीन लाख ग्राम सम्मिलित थे | 10 कुछ लोग वर्तमान पाकिस्तान के वहमनाबाद से इसकी पहचान करते हैं । किन्तु यह उपयुक्त नहीं प्रतीत होता । ब्राह्मणवाड वस्तुतः वर्तमान कालीन 'बादवाण 2 (गुजरात) है। यहीं के एक जैन मन्दिर में बैठकर महाकवि 1. आ०पु० 41104 1 2. दन पत्र 84:30, 90:22। 3. वहीं 83:45 204:205 4 आदि पर्व, 94/501 6. हे० ज्योग्राफीकल, पृ० 1 भारत का भौगोलिक स्वरूप 7 सभा पर्व 14:50-55 B भावप्रा जै०सी० पृ० 51) ७. अ० पु० 46 19 ० 801 12. जै००, पृ० 117 | 5. वन एवं 60, 73, 77: उद्योग एवं 158 10. स्क०पु० 1/ 2:39:161 11. प्राचीन
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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