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महाकद सिंह विराउ पज्जुण्याचार
कामगिरेदक्षभागे मरुदेशात्तथोत्तरे।
हूण देश: समाख्यात: शूरास्तत्र वसन्ति हि।। इनके अतिरिक्त प० चढ़ में चंग (14:5/6), कण्ह (14/5/6) एवं बोड (14/5/4) देशों का भी उल्लेख आया है। किन्तु इनकी अवस्थिति के विषय में प्राचीन-साहित्य में कोई भी सन्दर्भ नहीं मिल सके। हो सकता है कि कृष्णा नदी के पार्श्ववर्ती प्रदेश को कण्ह-देश माना जाता रहा हो।
नगर
पुर एवं नगर (4/5/14)
महाकवि जिनसेन ने पुर एवं नगर दोनों को पर्यायवाची बताया है। प0 च० में भी कवि ने नगरों के साथ-साथ प्रायः छन्द रचना को ध्यान में रखते हुए पुर एवं नगर दोनों विशेषों को समानार्थक प्रयुक्त किया है। यथा – दारमइपुरि (10/14/9), दारामईणयरि (1/9/7) आदि। प्राचीन-साहित्य का अध्ययन करने से विदित होता है कि इन पुरों एवं नगरों में प्रासाद, निकुंज, सुन्दर जल-व्यवस्था, विस्तृत-मार्ग, मल-प्रवाहिनी नलिकाएँ, परिखा, गोपुर, शिक्षास्थल, औद्योगिक-भवन, चिकित्सालय, चतुष्पथ आदि विधिवत् निर्मित रहते थे।
अयोध्या एवं साकेत नगरी (5/11/5, 9/4/9)
अयोध्या का अपर नाम साकेत नगरी भी है। जैन-साहित्य में उक्त अयोध्या के लिए दोनों नाम प्रचलित हैं। आद्य-तीर्थकर ऋषभदेव के गर्भ एवं जन्म, दूसरे तीर्थंकर – अजितनाथ, चौथे तीर्थकर ... अभिनन्दननाथ, पाँचवें तीर्थंकर – सुमतिनाथ तथा चौदहवें तीर्थंकर – अनन्तनाथ के प्रथम चार कल्याणक इसी भूमि पर हुए थे।
महाभारत के अनुसार इक्ष्वाकुवंशी राजाओं की यह राजधानी थी और मुनिवर वशिष्ठ, राजा कल्मषपाद के साथ यहाँ पधारे थे। ऐतिहासिक-काल में भी अयोध्या नगरी पर्याप्त प्रसिद्ध रही है। शुंग-वंशी नरेश पुष्यमित्र का एक महत्वपूर्ण शिलालेख इसी नगरी की खुदाई में मिला है। गुप्त-सम्राट चन्द्रगुप्त के शासनकाल में अयोध्यापुरी विद्या का प्रमुख केन्द्र थी। वर्तमान-काल में इसे भगवान् राम की जन्म-भूमि के रूप में पूजा जाता है, किन्तु राम जन्म-स्थल पर बाबरी मस्जिद' बनी हुई है 14 मुस्लिम-सम्प्रदाय में भी इसे खुर्द-मक्का और सिद्धों की सराय के रूप में पूजा जाता है। ___ अलकापुरी (8/1/2, 8/2/7, 8/3/1)
कवि सिंह ने अलकापुरी का विस्तृत वर्णन किया है। उन्होंने इसके साथ-साथ वहाँ के यक्ष का भी वर्णन किया है। महाभारत में इसे कुबेर की नगरी और पुष्करिणी कहा गया है। महाकवि कालिदास ने अपने मेघदूत में इस नगरी के समृद्धि-वैभव का विस्तार-पूर्वक वर्णन करते हुए इसे हिमालय की गोद में बसी हुई बतलाया है। उन्होंने अलकापुरी को सुवर्णबालुकामयी भूमि कहा है, जबकि पं० सूर्यनारायण व्यास ने इसे वर्तमान जोधपुर से 70 मील दक्षिण में स्थित बतलाया है। आदिपुराण में इसकी अवस्थिति विजयार्ध की
1.क्ति 5 तक, 44। 2. अyo 191511 3. आदि पर्व, 17638-36। 4. उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक विभूति. 20601 5. भादि जैन ती०. भा० ]. पृक्ष 1601 6. आदि पर्ष, B5/9:सधा पर्द 10:41 7. मेघदूत, पूर्वमेध, उत्तरमेह 2,3,4,13,1418. विश्व कालिदार : एक अधवन 'जानमण्डल प्रकाधान, इन्दौर) पृ०77