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प्रस्तावना
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वराड (14/5/4) - वराड नाम के देश का उल्लेख प्राचीन-साहित्य में नहीं हो सका है किन्तु यदि इसे विराट देश मान लिया जाए तो इसकी पहचान मत्स्य देश के साथ की जा सकती है। महाभारत के अनुसार अज्ञात बनवास में भटकते हुए पाण्डव मत्स्य देशा में आये थे। मनस्य' देश वर्तमान राजस्थान के भरतपुर एवं अलवर जिलों में सीमित था। सायंभरि (शाकम्भरी, 6/913) ___ महाभारत के अनुसार यह एक दिवी सम्बन्धी तीर्थ था। आधुनिक भूगोल के अनुसार वर्तमान कालीन साम्भर (राजस्थान) ही शाकम्भरी का है। यह चौहानों का प्रसिद्ध राज्य था। सिन्धु (14/5/7)
महाभारत के अनुसार यह एक प्राचीन जनपद था, जिसका राजा जयद्रथ द्रौपदी के स्वयंवर में आया था। शक्तिसंगमतन्त्र के अनुसार इस जनपद का विस्तार लंका से मक्का पर्यन्त बतलाया गया है। इसके अनुसार यह प्रदेश उत्तरी एवं दक्षिणी दो भागों में विभक्त था। उत्तरी भाग डेरा इस्माइलस्वां (आधुनिक पाकिस्तान) की ओर था। उत्तरी सिन्धु को शुक्तसिन्धु और दक्षिणी को पान-सिन्धु कहा गया है। अनेक प्राचीन ग्रन्थों में सिन्धु को सौवीर के साथ उल्लिखित किया गया है। इससे विदित होता है कि दोनों देशों की सीमाएँ परस्पर में जुड़ी हुई थीं। स्कन्दपुराण के अनुसार यहाँ के घोडे इतने प्रसिद्ध थे कि वे सिन्धु-देश के पर्यायवाची बन गये थे। इसीलिए अमरकोशकार ने घोड़े के पर्यायवाची नामों में सिन्धु अथवा सैन्धव को भी रखा है। सोरठ्ठ (सौराष्ट्र 4/12/5, 14/5/6):
प० च0 में सौराष्ट्र देश का विस्तृत वर्णन आया है। वहाँ के नदियों, पर्वतों, समुद्र, कृषि, भवन एवं वहाँ के निवासियों की समृद्धि, सुन्दरता एवं सुरुचियों का सुन्दर वर्णन किया है। जैन-साहित्य में सुराष्ट्र को जैन-संस्कृति का प्रधान गढ़ तो माना ही गया है, साथ ही उसे बड़ा भारी व्यापारिक केन्द्र भी माना गया है। दूर-दूर के व्यापारी वहाँ व्यापारिक सामग्रियों का आदान-प्रदान करने के लिए आते-जाते बने रहते थे। जैनियों के 22वें तीर्थकर नेमिनाथ को अत्रस्थित गिरनार पर्वत से ही मुक्ति प्राप्त हुई थी।
ई०पूर्व० 317 के लगभग चन्द्रगुप्त मौर्य ने यहाँ कुछ पर्वतीय नदियों को बाँधकर सुदर्शन-झील का निर्माण कराया था। महाभारत के अनुसार दक्षिण दिशा के तीर्थों के वर्णन प्रसंग में उक्त देश के अन्तर्गत चमसोभ्देद, प्रभास क्षेत्र, पिंडारक एवं ऊर्जयन्त अथवा रैवतक पर्वत आदि पुण्यस्थलों का वर्णन आया है। हूण (6/3/12) ___ महाभारत के अनुसार 'हूण' एक देश था, जहाँ का राजा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भेंट लेकर आया था। हर्षचरित के अनुसार यह उत्तरापथ का एक देश था। शक्तिसंगमतन्त्र के अनुसार यह देश कामगिरि के दक्षिण और मरुदेश के उत्तर में स्थित था। यहाँ के लोग शूर-वीर अधिक होते थे, जैसा कि कहा गया है
1, आदि पर्व, 155:21 2. वन पर्व,84/13-171 3.आदि पई, 185/21! 6. वन पर्व, 8/19-2।। 7. सरकर योग्राफी० ए०27. नोट 21
4. शाक्ति संतं. 3/7/57।
5. स्क०० 2/2/49:30, 2/8/5/267