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महाकर सिंत विरहाउ फन्जुष्णचरिज
जीता था।। तन्त्र-शास्त्र में इसकी अवस्थिति के विषय में लिखा गया है:
शारदामठमारभ्य कुंकुमाद्रि तटान्तकः ।
तावत्कश्मीरदेश: स्यात् पंचाशद्योजनात्मकः ।। योगवाशिष्ठ में काश्मीर को हिमालय की कुक्षि में स्थित अत्यन्त प्रसिद्ध और प्राचीन देश कहा गया है, जिसका 'अधिष्ठान' नामक नगर प्रद्युम्न-शिखर पर स्थित था। कवि विल्हण ने अपने कर्णसुन्दरी' नामक ग्रन्थ में उसे यशारदा-देवा कहा है ! Mशकाल में भी उसे स्वर्ग के समान सुरम्य-प्रदेश माना जाता था। मुगल सम्राटों ने वहाँ 'विभिन्न प्रकार के कीड़ा-स्थल बनाकर उसे पर्याप्त महत्व दिया था। कीरि (14/5/3)
महाकवि सिंह ने इसकी स्थिति के विषय में कोई चर्चा नहीं की है। बृहत्संहिता में इसकी अवस्थिति गान्धार, सौवीर, सिन्धु और शैलान (पर्वतीय) के साथ बतलाई गयी है। उसके कर्भ-विभाग में ईशान-दिशा में स्थित काश्मीर, अभिसार दरद, तंगण एवं कुलूत प्रभृति देशों के साथ इसकी गणना की गई है। इससे प्रतीत होता है कि यह कांगड़ा-घाटी के बैजनाथ और उसके आसपास कहीं स्थित होना चाहिए। कुरुजांगल (11/8/9)
महाभारत काल में यह एक सुविख्यात भारतीय जनपद के रूप में प्रसिद्ध था। इसकी राजधानी हस्तिनापुर थी। आदिपुराण में इसकी अवस्थित्ति थानेश्वर, हिसार अथवा सरस्वती एवं यमुना-गंगा के बीच के प्रदेश में बतलाई गयी है। तीर्थंकर ऋषभदेव ने अपनी तपस्या का एक वर्ष पूर्ण होने पर इस जनपद में विहार किया था। राजशेखर ने भी हस्तिनापुर जनपद का उल्लेख किया है।' केरल (6/3/12, 14/5/8)
महाभारत के अनुसार यह एक दक्षिण-भारतीय जनपद था।10 कर्ण ने दिग्विजय के समय यहाँ के राजा को जीत कर उसे दुर्योधन का करद बनाया था। वर्तमान भूगोल के अनुसार दक्षिण का मलाबार प्रान्त, जिसमें मलाबार, कोचीन एवं त्रावनकोर के जिले भी सम्मिलित हैं, केरल कहा जाता है। आदिपुराण में इसका सुन्दर वर्णन किया गया है ।12 कोसल (5/11/5)
महाभारत में यह एक प्रसिद्ध जनपद के रूप में वर्णित है, जो उत्तर एवं दक्षिण कोशल में विभक्त था ।।। विष्णुधर्मोत्तरपुराण के अनुसार वहाँ के निवासी सुन्दर तथा पुरुषार्थी होते थे 114 वर्तमान में इसकी पहचान अवध प्रदेश स्थित गोंडा, बहराइच, बाराबंकी, फैजाबाद और लखनऊ के प्रदेश से की जाती है।
जैन साहित्य में कोशल-देश का बड़ा महत्व है। ऋषभदेव का जन्म इसी देश की अयोध्या नगरी में हुआ था। अत: उन्हें कौशलिक भी कहा जाता है। बृहत्कल्पभाष्य से विदित होता है कि इसका प्राचीन नाम विनीता
था।
1. सभा पर्व 27:17. भीष्म 4.9753467; 2. कामी परिशिष्ट 2. पृ. 2831 1. पोपवाशिष्ठ, 3:31/10: 3:32/11-121 4.दे० प्रशस्ति श्लोक 4. पृ० 56: 5. बृहत्संहिता, 4231 6. वहीं कुछ विभाग 14:291 7. आदि पर्व, 94/49: ४. आoपुर 16:153। 9. काम017। 10. भीष्म पर्व: 9/581 11. वन वं. 254/15-161 12. आogo 18154129/7913.भीष्म पर्व: 9/40-411 14. विष्णुधर्मोतर पुराण, 1:2141