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________________ [83 शती में आभीरों का शासन महाराष्ट्र एवं कोंकड़ प्रदेश पर भी था । 2 गुप्त सम्राट् समुद्रगुप्त में आभीरों को अपने वश में किया था। उसका अध्ययन करने से विदित होता है कि आभीर - जनपद झांसी एवं विदिशा के मध्य स्थित थर कच्छय ( कच्छदेश, 14/5/6 ) महाभारत काल में वह भारतीय जनपद के रूप में प्रसिद्ध था । 1 वायुपुराण में इसे अन्तनर्मदा या उत्तर नर्मदा - खण्ड में स्थित बतलाया गया है। महर्षि पाणिनि ने वहाँ के निवासियों को काच्छक कहा है ।" आदिपुराण के अनुसार भरत चक्रवर्ती अपनी दिग्विजय के प्रसंग में दक्षिण भारतीय अभियान में समुद्री किनारे. पर चलते-चलते कच्छ देश में पहुँचे थे।" कण्णा ( कर्नाटक, 6 / 3 / 12 ) प्रस्तावना वर्तमान कर्नाटक प्रदेश ही प०च० में उल्लिखित 'कण्णाड' है। महाभारत में इसे एक दक्षिण भारतीय जनपद कहा गया है।' आधुनिक भूगोल के अनुसार इसमें मैसूर एवं कुर्ग के भूमिभाग सम्मिलित हैं। इसकी राजधानी श्रीरंगपत्तन थी । राजशेखर ने भी इसी रूप में इसका उल्लेख कर्पूरमंजरी" में किया है। I करहाट ( 6/3/12), प०च० में इसकी अवस्थिति की कोई चर्चा नहीं है, किन्तु महाभारत के अनुसार यह एक दक्षिण भारतीय देश था | जिस पर सहदेव ने अपने दूतों के द्वारा विजय प्राप्त की थी। आदिपुराण के अनुसार इसकी अवस्थिति महाराष्ट्र में विदित होती है। वर्तमान सतारा जिले के करड या कराड नामक स्थान से इसकी पहचान की जा सकती है। कलिंग (14/5/3) महाभारत के अनुसार 'कलिंग' दक्षिण भारत का एक प्राचीन देश था । 12 महर्षि पाणिनि ने भी इसका उल्लेख किया है। बौद्धागमों में भी इसके विविध समृद्ध पक्षों की चर्चा आती है ! 14 इससे यह स्पष्ट है कि कलिंग देश भारत के प्राचीनतम देशों में रहा है। कलिंग नरेश खारवेल के हाथीगुम्फा शिलालेख " से विदित होता है कि प्राचीन राष्ट्रीय " आदि जिन - प्रतिभा" की वापिसी के लिए उसने मगध से भयानक युद्ध किया था। प्राचीन जैन - साहित्य में कलिंग का प्रचुर मात्रा में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार तोसलि इस देश का एक प्रसिद्ध नगर था, जो डॉक्टर डी०सी० सरकार के अनुसार वर्तमान धौली का ही वह अपर नाम है। आचार्य जिनसेन ने इस प्रदेश का विशेष वर्णन किया है। तदनुसार ऋषभदेव के एक पुत्र कलिंग के नाम पर ही उस देश का कलिंग नाम पड़ा। कसमीर (काश्मीर, 14/5/3 ) महाभारत के अनुसार यह एक भारतीय जनपद था। उसके अनुसार दिग्विजय के समय इसे अर्जुन ने 1. समपर्क 22/9-101 2 न्यू हिस्ट्री अनि इंडियन मल 6. अष्टाध्यायी. 4:213.3-1.34 1 7. पुढं 16:153:29:79 12. आदि धर्व 2149; भीष्म गर्म, 9:46: 9:09 15. दे० खारवेल शिलालेख, पंक्ति 12 7-121 16. दे० आ० 16/154 खण्ड 5 0 51 3 नही० पृ० 8911 4. भीष्म पर्व 9:56 1 5. वा०30 4563 8. भीष्म पर्व 2:59 9. क०मं० 115 1 10 सभा एवं 31/701 11. 3770 13. अष्टाध्यायी, 41:1701 14. दे० बुसकालीन भारतीय भूगोल, पृ० 494-4951 107152 29:82 तथा देव उडीत' में जैन एवं धर्म (ले० प्र० राजारस जैन)
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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