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हैं। इनमें निम्नलिखित नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं - कदली (कलिकेलि 9/2/9) करौंदा ( करवंद 3/7/5),
fafafar (10/6/5) |
(घ) शोभावृक्ष
शोभा वृक्ष उन वृक्षों को कहा जाता है, जिन्हें उपवनों, उद्यानों एवं राजप्रांगणों की सौन्दर्य वृद्धि हेतु लगाया जाता है। कवि सिंह ने प०च० में ऐसे अनेक शोभा - वृक्षों का उल्लेख किया है, जो निम्नप्रकार हैं-अर्जुन (अज्जण 10/6/4), अशोक (असोय 3/7/8, कंकेलि 3/7/4), ऋद्धिंजण (3/7/5), करवीरि (10/6/3), कंथारि (10/6/3), चंदन (3/1/5), न्यग्रोध ( जग्गोह 9 / 9 / 10), नागवल्ली (णायवेलि 11 / 2 / 11 ), तमाल (5/12/5), ताम (10/6/9), ताल (5/12/5), ताली (5/12/5), तिलक ( तिलय, 11/1/4 ) देवदारु ( 3/7/5), धम्मण (10/6/3), धव (10/6/3), धाई (10/6/3), फोंफली (10/6/11), माला (10/6/ 9), मालूर (5/12/5), घमल (9/12/4), सग्ग (10/6/4), सज्ज (10/6/4), शीशम (सीसमी, 10 / 6/11 ) ।
प्रस्तावना
(ङ) अन्य वृक्ष एवं पौधे
कवि ने उपर्युक्त वृक्षों के साथ-साथ अन्य वृक्षों एवं छोटे पौधों का भी उल्लेख किया है। जैसे --- बाँस (बंस. 10/5/6 ), दुभदल ( 13/15/12), दोव (3/3/1 ) |
कल्पवृक्ष की चर्चा भी कवि ने बहुतायत की है—
कल्पवृक्ष (1/10/6, 11/1/4)
कवि सिंह ने अन्य वृक्षों के साथ ही कल्पवृक्षों का भी उल्लेख किया है। ये वृक्ष पौराणिक हैं और पुराणों अनुसार वे सभी प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति किया करते थे ( 1/10/6, सुरविड 11/1/4 ) | 2. अनाज एवं तिलहन
कवि ने ग्राम, नगर एवं देश-वर्णन प्रसंग में धन-धान्यादि समृद्धि की गणना के लिए उन स्थानों में उत्पन्न होने वाले अनाज एवं तिलहनों का भी वर्णन किया है। उससे तत्कालीन खाद्यान्नों की उत्पत्ति पर अच्छा प्रकाश पड़ता है । प०च० में उत्पादित वस्तुएँ निम्न प्रकार है- अक्षत (अक्लउ 6 / 11 / 7 ), तिल ( अयवत्तु 3/4/5, 14/16/14), इक्षु (उच्छ 1 /7/7), कलमशालि (धान, 1/7/4), खांड (खंड, 11/2/9), दालि (11/21/5) आदि । पशु, पक्षी एवं जीव-जन्तु
'कवि वनस्पति-जगत के साथ-साथ पशु-पक्षी जगत से भी सुपरिचित था। जड़ एवं चेतन जगत का उसने कितनी गम्भीरता के साथ निरीक्षण कर अपनी मानसिक वृत्ति के साथ उनसे तादात्म्य स्थापित किया था, उसका परिचय प०च० के इन नामोल्लेखों से सहज ही उपलब्ध हो जाता है। उनके वर्गीकृत नाम निम्न प्रकार हैंपशु, (जंगली)
करिकुंभ (गजसिर, 2/2/5), किरडे ( सुअर, 3/14/18 ), केसरी ( सिंह 2 / 17 / 11 ), कुरंग (मृग 2/2/8, 2/ 2/9), गंडय (गैंडा, 2/2/2), तरछ ( भालू, 4/1/2 ), पंचाणण ( सिंह, 6 / 13 / 1 ) मयहि (हिरण, 2 /2 / 10), मिइय (हिरणी 2 / 2 / 10 ) मृगारि ( सिंह, 8/9/3), रीछ (रिंछ, 8/13/3), बाघ (वन्ध, 4/ 1 / 2 ) वाणर (साहामय, 4/1/3, 8/9/3 ) सिन्धुर ( गज, 6 / 21/8 ) सिंह (सीहो, 2/2/5, 2/2/7 ), शरभ (सरय, 2/2 / 2 ), शार्दूल (सहूल, 4/1/1, 4/13/8 ), शृगाल ( सियाल, 4/16/20), शृगाली ( शिवा, 2/18 / 12 ) ।