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महारु सिंह विरइउ पज्जुण्णचरिउ
विविध प्रकार की औषधियों के लिए भी प्रयुक्त होता है। इसीप्रकार कवि ने जिस 'कपित्थवन' का उल्लेख किया है, वह वर्तमान में कैंथा (कैथ) के रूप में प्रसिद्ध है। यह भोजन को सुस्वादु बनाने में अवलेह्य का काम तो देता ही है. साथ ही ना नार की अन्तर्जाड्य बीमारियों में औषधि के रूप में प्रयुक्त होता है। कवि ने इन वनों के प्रसंग में विविध वनस्पतियों के भी उल्लेख किये हैं। इन वनस्पतियों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं:
(1) वृक्ष, (2) अनाज एवं तिलहन । 1. वृक्ष
(क) पुष्प वृक्ष । (ख) फल वृक्ष। (ग) उभय वृक्ष । (घ) शोभा वृक्ष, तथा (ङ) अन्य वृक्ष एवं पौधे । (क) पुष्प-वृक्ष
बनस्पति-शास्त्र में पुष्प वृक्षों की 160 जातियाँ मानी गयी हैं, जिसमें कमल और कुमुदनी को विशेष महत्त्व दिया गया है। महाकवि सिंह ने प०च० में अनेक पुष्प-वृक्षों की चर्चा की है। उन्होंने कमल का वर्णन प्रतीक रूप में भी प्रस्तुत किया है एवं कमल की विविध जातियों के उल्लेख भी किये है जैसे--कमल (मिसिण 6/21/5), कुबलय (1/13/3), णीलुप्पल (12/13), नीलकमल (कंदोट्ट, 1/7/1), पंक (3/4/8), रक्तोत्पल (!3/11/1), सरोरुह (1/9/1), आदि। कमल के अतिरिक्त अनेक पुष्प-वृक्षों के नाम भी प०च० में उपलब्ध होते हैं, जो निम्नप्रकार हैं -आम्रमंजरी (3/4/6. 6/17/1), कचनार (10/6/8), कनैर (कणियारि, 10/6/8) केतकी (केयइ, 15/3:18), कुन्द (6/17/7, 11/13/9), खरदसु (1/9/1), घुमची (गुंजाहल, 10/987), चम्पा (चंपय 3/7/5. 10/6/12), जपा (जासवन 3/4/3), तामरस (1/13/6), धारा (15/3/18), दौनापुष्प (द्रौण पुष्पी, दवण 6/17/8), पटुल (गुलाब, 6:17/4), परिमल (1/7/1), पारिजात (10/1219), पलाश (केसु, 6/16/13, 10/6/9), मचकुन्द (3/1/12, 10/6/12), मालती (मल्लिय, 2/11/9) मल्लिका (मालइ 2:11/9), मोंगरा (मोग्गरप, 10/6/12), वकुल (वउल 3/7/5, 11/1/4), बेला (बेइल्ल 11/13:9)।
(ख) फलवृक्ष
प०० में विविध प्रकार के फलवृक्षों के उल्लेख आए हैं जिन्हें उपयोगिता की दृष्टि से तत्कालीन-समाज की सम्पत्ति कहा जा सकता है। नामोल्लिखित फलों की यह विशेषता है कि वे एक ओर जहाँ लोगों के भोजन में पौष्टिक तत्व प्रदान करते हैं, वहीं चे विविध औषधियों के निर्माण में भी उपयोग में लाये जाते थे। महाकवि सिंह ने निम्न फल-वृक्षों के उल्लेख किये हैं—आम (अंब, 3/8/5, 8/8/7, 87812), अमड़ा (आमाडिया, 10/6/9), आंवला (आउलं 10/6/9), इमली (चिंधिणी, 10/6/5), इलायची (एल, 10/6/4), कटहल (फणिस, 3/7/4), कदम्ब (3/1/5, 3/7/5, 15/3/18), करौंदा (करवंद, 3/7/5), कलमी आम (साहार 6/7/1), किसमिस (दक्ख. 3/1/5), केला (कलिकेलि, 3/1/5), खजूर (खजूरिया 10/6/6), जम्भीरि नींबू (जंवीरि. 10/66), जामुन (जंबु. 3/7/5), जायफल (जाइ 10/6/11), नारियल (णालियर 10/6/6), नारंगी (णारीने, 10:6/6), पीपल (पिप्पली 10/6/4), पुन्नाग (पुण्णाय, 11/13/9), बहेडा (वरी, 106/9), बादाभ (मयादमि, 10/6/7), लवंग (3/1/15, 3/7/5), वायविरंग (पियंगु 3/1/5, 5/12/6, 6:1773), विजउरिय (विजुरिया नीबू, 10/6/6) एवं सिरिखंडू (10/677) |
(ग) उभयवृक्ष प०च० में कुछ ऐसे भी वृक्ष एवं लताओं के नाम उपलब्ध हैं, जिनमें फल एवं पूल दोनों ही उपलब्ध रहते