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महाकद सिट विराउ पज्जुण्णचरित
गोबद्धणगिरि (गोवर्द्धनगिरि, 9/12/3} __ कवि ने भगवान् श्रीकृष्ण की शक्ति एवं पराक्रम का वर्णन करते हुए उन्हें गोवर्द्धनधारी कहा है तथा उसके समीप बहने वाली यमुना का भी उल्लेख किया है। इससे यह स्पष्ट विदित होता है कि मथुरा-वृन्दावन के समीपवर्ती वर्तमान गोवर्द्धन-पर्वत से ही कवि का तात्पर्य है। महाभारत के अनुसार जब इन्द्र अपनी पूजा न पाने के कारण व्रजवासियों को मिटा देने के लिए ब्रज में घोर-वर्षा करने लगा, उन दिनों भगवान् कृष्ण ने बचपन में ही समस्त प्राणियों की रक्षा के लिए एक सप्ताह तक गोवर्धन पर्वत को एक हाथ पर उठा रखा था। तक्खयगिरि (3/14/9, 4/13/8)
प०च० को छोड़ कर अन्य प्राचीन जैन साहित्य में इस पर्वत का नामोल्लेख नहीं मिलता। तक्षशिला का उल्लेख अवश्य मिलता है। पज्जुण्णचरिउकार ने तक्षशिला के शिलापद को पर्वत सूचक मान कर इसे तक्खयगिरि अथवा समकारि कहा है। ___ महाभारत के अनुसार तक्षशिला वह स्थल है, जहाँ जनमेजय ने सर्पसत्र का अनुष्ठान एवं महाभारत की कथा सुनी थी । आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार तक्षशिला 'गान्धार की राजधानी थी। वह उत्तरापध-राजमार्ग का प्रमुख व्यापारिक नगर था। सिन्धु और विपाशा के मध्यवर्ती नगरों में सर्वश्रेष्ठ एवं समृद्ध नगर माना जाता था।' बौद्ध-साहित्य के अनुसार यह विद्या का प्रधान केन्द्र था। मलय (4/13/2)
प०च० में इसकी अवस्थिति के विषय में चर्चा नहीं की गयी है, किन्तु महाभारत के अनुसार यह दक्षिण भारत का एक पर्वत है। महाभारत के अन्य प्रसंग में इसे भारतवर्ष के सात कुल-पर्वतों में प्रधान बतलाया गया है। काव्य-मीमांसा में इसे पाण्डय-देश का पर्वत कहा गया है, इसे अद्रिराज भी कहा गया है। कवि राजशेखर ने इस पर्वत का वर्णन विशद रूप से किया है एवं उसकी चार विशेषताओं का उल्लेख किया है। वहाँ उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का वर्णन कर इसे चन्दनगिरि भी कहा है।' वराहसेलु (वाराह शैल 8/11/7) ___ महाकवि सिंह ने प०च० में प्रद्युम्न की वीरता का वर्णन करते हुए इस पर्वत की चर्चा की है, लेकिन इसकी अवस्थिति के विषय में वे मौन हैं। महाभारत में इस पर्वत की चर्चा की गयी है एवं उसे मगध की राजधानी गिरिव्रज के समीप एक पर्वत कहा गया है। महाकवि जिनसेन ने भी वराह-पर्वत का वर्णन किया है। उसमें 'वराह' को 'वैभार' के नाम से वर्णित किया है एवं उसकी अवस्थिति मगध की राजधानी राजगृह की पहाड़ियों में बतलाई है। हरिवंशपुराण में वैभार को राजगृह की दक्षिण-दिशा में माना है। यह पर्वत त्रिकोणाकार है। विउलगिरि (विपुलाचल, 1/6/3) ___ प०च० में कवि ने विउलगिरि का उल्लेख भ0 महावीर के प्रसंग में किया है और बतलाया है कि भ० महावीर का समवशरण विपुलाचल पर आया था और राजगृह नगरी का राजा श्रेणिक वहाँ जाकर उनकी वन्दना किया करता था। आदिपुराण में भी इसका उल्लेख इसी प्रसंग में हुआ है। राजगृह की पाँचों पहाड़ियों में यह प्रथम है। 1. उद्योग पर्व, 130/46 तथा सभापर्व 419 2. आदिपर्व, 3:201 ३.० सिहे. व्या 6264। 4.दे. सभा पर्व, 10:321 5.देश भीष्म पर्व. 1| 6. का०मी- 4112,41151 7. वही0 96/718. सभा पर्व 21/2। 9. 360. 29:461