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________________ प्रस्तावना [77 है। कवि सिंह ने स्वयं इसकी अवस्थिति के विषय में कोई चर्चा नहीं की। किन्तु आचार्य जिनसेन (8वीं सदी), आचार्य हेमचन्द्र (13वीं सदी) एवं अन्य कवियों ने इसकी अवस्थिति के सम्बन्ध में चर्चा की है। आचार्य जिनसेन कृत आदिपुराण में विजयाड़ की दो श्रेणियों की चर्चा आयी है। उत्तर श्रेणी एवं दक्षिण श्रेणी। उत्तर श्रेणी के राजा नमि तथा दक्षिण-श्रेणी के राजा विनमि की चर्चा की गयी है।' प०च० में उसे 50 योजन चौड़ा और 25 योजन ऊँचा बतलाया गया है। आचार्य हेमचन्द्र कृत त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित के उल्लेखानुसार वैताढ्य पर्वत अपनी 400 मील की लम्बाई के दोनों छोरों से विशाल गंगा एवं यमुना का स्पर्श करता है। यहाँ के राजा नभि एवं विनमि ने अपनी उत्तर एवं दक्षिण श्रेणियों में पचास-पचास विशाल नगर बसाये थे। कवि सिंह ने इसका अपर नाम सिलोच्चय (शिलोच्च) भी कहा है। हिमगिरि (13/16/5) हिमगिरि की पहचान हिमवत् अथवा हिमालय से की जा सकती है। कवि ने हिमगिरि की चोटी का वर्णन किया है। इससे भी यहीं प्रतीत होता है कि हिमालय की सर्वोच्च चोटी गौरीशंकर है। जैन-परम्परा के अनुसार यह जम्बद्वीए का प्रथम पर्वत है, जिस पर ग्यारह कट हैं। इसका विस्तार 105212/19 योजन है। इसकी ऊंचाई 100 योजन और गहराई 25 योजन मानी गयी है। अट्ठावय (अष्टापद) अर्थात् कइलास (कैलाश 21414) महाकवि सिंह के अट्ठावर पर्वत का उल्लेख किया है, साथ ही अन्य प्रसंग में कइलास की भी चर्चा की है। प्राच्य भारतीय-साहित्य में कैलाश पर्वत का विशद वर्णन किया गया है। महाकवि जिनसेन ने कैलाश पर्वत के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए उसे प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का निर्वाण स्थल माना है। आचार्य हेमचन्द्र एवं अन्य जैन-कवियों ने इसका दूसरा नाम अष्टापद भी माना है। महाभारत के अनुसार कैलाश पर्वत की उँचाई 6 योजन है। वहाँ सभी प्रकार के देवता अम्या करते हैं। उसके समीप ही विशाला (बदरिकाश्रम) है। महाभारत के एक अन्य प्रसंग के अनुसार राजा सगर ने अपनी दो पत्नियों के साथ कैलाश पर्वत पर तपस्या की थी। उज्जिलगिरि (1/1/13) एवं रेवगिरि (14/13/3, 15/10/9) उज्जिलगिरि, रेवयगिरि ऊर्जपन्त अथवा गिरनार पर्वत के ही अपरनाम हैं। जैन-मान्यता के अनुसार 22वें तीर्थकर श्री नेमिनाथ की यह निर्वाण भूमि है। महाभारत में भी इसे एक सिद्धिदायक पर्वत के रूप में स्मृत किया गया है। पार्जीटर ने इसकी पहचान काठियावाड़ के पश्चिम-भाग में वरदा की पहाड़ी से की है।" केयार (केदार, 6/16/14) कवि ने इसकी अवस्थिति के विषय में कोई संकेत नहीं किया है, किन्तु रूपकालंकार के माध्यम से वह कहता है कि "शीतकाल घबरा कर केदार पर चला गया” इससे प्रतीत होता है कि कवि का यह केदार हिमालय-पर्वत की एक चोटी से ही सम्बन्ध रखता है। महाभारत में कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत केदार नामक एक तीर्थ की चर्चा आई है, जहाँ पर स्नान करने से पुण्यानुबन्ध होता है।।, किन्तु महाभारत का यह केदार उक्त केदार से भिन्न है। 1. अपुo 4781, 18/149 2 40D 14/5:101 3. दे. अनेकान्त, 33:2:161 4.4ही। 5.:च: 7:15:41 6 देव Mayo 13:12-201 7. सिहे व्य: 3:275। ४. दे८ सभा पर्व 46121 9.३० वनग. K8:2] | 10. ज्य:- द्विक्शा औ OHOआई०. पृ० ।। 11. दनपर्न. 882
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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