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________________ प्रस्तावना __ [75 तव सतभामा चवइ निरुत जाके पहिलइ जामइ पूत । सो हारइ जाहि पाछइ होइ तिहि सिहु मुंडि विकाहइ सोइ ।। -प्रद्युम्न० 112 तथा तुलना के लिए देखिए पज्जुण्णचरिउ, 3/9/15-16। कनक धोवतो जनेऊ धरै द्वादस टीकौ चन्दन करै। च्यारि वेद आचूक पढंत पटराणी घर जायोपूत ।। -प्रद्युम्न0 374 तथा तुलना के लिए देखिए पज्जुण्णचरिउ 11/16:21 सिर कंपंत वंमण जब कहइ बोल तिहारो साचउ अहउ । -प्रद्युम्न0 378/1 तथा तुलना के लिए देखिए पज्जुण्णचरिउ 11/16/7। इसी प्रकार सधारु के 385 पद्य से 394 पद्य एवं 403 से 404 पद्य, पज्जुण्णचरिउ के 11/21-23 एवं 12! 1-3 से पूरी तरह मिलते हैं। (6) भौगोलिक सन्दर्भ महाकवि सिंह धर्म, दर्शन, आचार, अध्यात्म के साथ-साथ प्रकृति के भी कवि हैं। उन्होंने जहाँ आध्यात्मिक जग्गत का साक्षात्कार किया. वहीं प्रकृति अर्थात् भौतिक-जगत का भी। प्रस्तुत-प्रसंग में भौतिक जगत का अर्थ है— भूगोल। किसी भी देश अथवा राष्ट्र की संस्कृति एवं सभ्यता का निर्माण उसके भौतिक अथवर भौगोलिक आधारों पर होता है। सामाजिक रीति-रिवाज, आर्थिक-संगठन, रहन-सहन, खान-पान एवं विचारधारा आदि तत्तदेशीय, भौगोलिक- स्थिति से अत्यन्त प्रभावित रहते हैं। अत: कविकालीन सामाजिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन के प्रसंग में 'पज्जुण्णचरिउ' में वर्णित भौगोलिक-स्थिति का अध्ययन करना आवश्यक है। यद्यपि यह ग्रन्थ शुद्ध भूगोल से सम्बन्ध नहीं रखता, किन्तु कवि ने प्रसंगवश जहाँ-तहाँ उसके सन्दर्भ प्रस्तुत किये हैं, उनके आधार पर ही यहाँ उसका अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है। उपलब्ध भौगोलिक-सामग्री को वर्तमान भौगोलिक सिद्धान्तों के आधार पर निम्न दो भागों में विभक्त किया जा सकता है 1. प्राकृतिक भूगोल, एवं 2. राजनैतिक भूगोल अ. प्राकृतिक भूगोल प्राकृतिक भूगोल के अन्तर्गत वे वस्तुएँ आती हैं, जिनकी संरचना स्वत: सिद्ध अथवा प्रकृति से होती है। इनके निर्माण में मनुष्यगत-प्रतिभा एवं पुरुषार्थ की आवश्यकता नहीं होती। पज्जुण्णचरिउ में महाकवि सिंह द्वारा वर्णित प्राकृतिक भौगोलिक सामग्री निम्न प्रकार उपलब्ध है— (1) दीप एवं क्षेत्र, (2) पर्वत, (3) नदियाँ, (4) अरण्य एवं वृक्ष, (5) अनाज एवं तिलहन (6) पशु-पक्षी एवं जीव-जन्तु । द्वीप-जम्बूद्वीप (1/6/6, 4/2/1) ___ पज्नुण्णचरिउ में प्राकृतिक भूगोल की अधिकांश सामग्री पौराणिक है। कवि ने तिलोम-पण्णत्ति के आधार पर इसका वर्णन किया है। जैन पुराणों के अनुसार मध्यलोक में असंख्यात द्वीप, समुद्रों के बीच एक लाख योजन के व्यास वाला वलयाकार जम्बूद्वीप है। इसके चतुर्दिक लवणसमुद्र तथा बीचों-बीच सुमेरु-पर्वत है। 1. जीवराज ग्रन्थमाला से भाग में प्रकाशित (सोलापुर, 1981,1956)। 2. तिलेयपण्गत्ति। 3. दे० तत्वार्थराजनतिक 371
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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