SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्ताना [73 6. महाकवि माघ ने सूर्योदय के प्रसंग में बतलाया है कि सूर्योदय के कारण किसी को शोक और किसी को प्रमोद का अनुभव हो रहा है (दे० शिशु० 15वां सर्ग)। कवि सिंह ने अपने य०च० में उस कल्पना में कुछ परिवर्तन कर बतलाया है कि-"निशानाथ चन्द्रोदय के कारण किसी का विकास एवं किसी का विनाश हो रहा है (प०च०, 6/20-21)। (5) महासेन एवं सिंह कथावस्तु, कथानक-गठन एवं शैली की दृष्टि से कवि सिंह, कवि महासेन कृत प्रद्युम्नचरित से अत्यन्त प्रभावित हैं। कहीं-कहीं तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे महासेन के कुछ संस्कृत श्लोकों का कवि सिंह ने अपभ्रंशीकरण ही कर लिया हो। उनके कुछ अंशों का तुलनात्मक मानचित्र निम्न प्रकार है पज्जुण्णचरित 15 सन्धियाँ 1/8/9-10, 1/10/ll 1/8-11 211 3/5-6 प्रद्युम्न-चरित (महासेन) विषय-विस्तार 14 सर्ग - कुल कथावस्तु विस्तार 1/23 समुद्र वर्णन 1/10-13 सौराष्ट्र वर्णन 2/51-52 रुक्मिणी अथवा रूपिणी के चित्र को देख कर श्रीकृष्ण की प्रतिक्रिया 3/41-48 रुक्मिणी अथवा रूपिणी के पान का उगाल श्रीकृष्ण अपने चादर के एक छोर में बाँध कर रखते हैं। सत्यभामा उसे रहस्यपूर्ण वस्तु समझ कर, चुपचाप चुराकर तथा उसका चूर्ण बना कर अपने शरीर में लेप कर लेती है। इसे देखकर श्रीकृष्ण उस पर हँस पड़ते हैं। 918 नारद द्वारा नभोयान संरचना दोनों ग्रन्थों की भाषा-साम्य के कुछ उदाहरण - भीष्मजा मम कनीयसी स्वसा, गूजितायदि मया सपर्यया । किं त्वया परमतोष कारिणा, निविदेक हसितं निरर्थकम्। —प्रद्युम्न) 3/73 गोवालय तुह के तडिय बुद्धि उवहासु करतहं कवण सुद्धि। रूविणि वि मज्झु सा सस कणिट्ठ उग्गालुसु बहे तुह काइँ धिट्ठ। ..................ससहोयराइँ सहुँ कवणु रोसु । —प०च० 3/6/7.9 वचनं तदतीव पेशलं, मदनोत्तं विनिशम्य नारदः । अयि वत्स जराधिकस्य मे निपुणत्वं कुत इत्यवोचत् ।। 10/2/6-9
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy