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________________ 72] महाकइ सिंह विरउ पज्जुण्णचरित तत् सदा इव हिरदे मनै रमाएपेयुषि भीमभजायुधे । धनुरपास्य सबाणधि शंकरः प्रतिजघान घनैरिव मुष्टिभिः ।। -किरात 18/1 तुलना के लिए देखिए पज्जुण्णचरिउ 13/13/1-151 राजा दुर्योधन के वर्णन का विदर्भ-कुण्डिनपुर के राजा भीष्म के वर्णन पर प्रभाव-. कृतारिषड्वर्गजयेन मानवीयमगम्यरूपा पदवीं प्रपित्सुना। विभज्य नवतंदिवमस्ततन्द्रिणा वितन्यते तेन नयेन पौरुषम् ।। ----किरातः 119 तुलना के लिए देखिए –पज्जुण्णचरिउ 26। सूर्यास्त वर्णन-प्रसंग सूर्य को अस्ताचल की ओर जाते हुए देख कर चक्रवाक-मिथुन अशोकसन्तप्त हो उठते हैं। सूर्यास्त वर्णन-योजना में दोनों कवियों की कल्पनाएँ प्राय: समान हैं। यया- गम्यतामुपगते नयनानां लोहितायति सहसमारीचौ । आससाद विरह्यय धरित्री चक्रवाक हृदयान्यभिताप: ।। -किरात० 94 तुलना के लिए देखिए पज्जुण्णचरिउ 6/19/4-10, 6/12/3-6 (4) माघ एवं सिंह महाकवि माघ के शिशुपाल वध का भी पज्जुण्णचरिउ पर अधिक प्रभाव है। इसका मूल कारण यह है कि दोनों ही रचनाशों में शिशुपाल एक सामान्य नायक के रूप में वर्णित है तथा उनकी कथावस्तुओं के अनुसार श्रीकृष्ण द्वारा उसका वध हुआ है। अत: यह स्वाभाविक भी लगता है कि कवि सिंह ने इस रचना से पर्याप्त प्रेरणा ग्रहण की होगी। दोनों का एक साथ अध्ययन करने से उनमें निम्न समानताएँ परिलक्षित होती हैं--- 1. श्रीकृष्ण-सभा में नारद का आगमन-शिशुपालवधम्, प्रथमसर्गारम्भ में एवं पज्जुण्णचरिउ 1/14/13-14 | 2. शिशुपालवधम् के श्रीकृष्ण ने चेदिराज राजा शिशुपाल का वध किया और पन्जुण्णचरिउ (2/20/1-2) के श्रीकृष्ण ने भी राजा शिशुपाल का वध किया। 3. शिशुपालवधम् (20165) के अनुसार शिशुपाल ने अग्निबाण छोड़ा तो पज्जुण्णचरिउ (13/10:8) के अनुसार श्रीकृष्ण ने अग्नेयास्त्र छोड़ा। 4. शिशुपालवधम् (20/65) के अनुसार श्रीकृष्ण ने मेघबाण छोड़ा तो पन्जुण्णचरिउ (13/11/l) के अनुसार प्रद्युम्न ने वारुणास्त्र छोड़ा। अन्य वर्णन-प्रसंगों में भी समानता है। महाकवि माघ ने शिशुपाल वध में बताया है कि धर्मराज युधिष्ठिर के यज्ञ के सभय श्रीकृष्ण उसमें आदरपूर्वक उपस्थित हुए और उन्होंने यज्ञ के समय स्वयं पूजा की, इसे देखकर शिशुपाल अत्यन्त क्रोधित हो उठा। (द० शिशु0 15वां सर्ग)। महाकवि सिंह ने माघ की इस कल्पना से प्रभावित होकर तथः माघ की कल्पना में कुछ मोड़ देते हुए बतलाया हे कि सात्यकि नामक दिगम्बर महामुनि की साधना, कठोर तपश्चर्या एवं समवृत्ति की कीर्ति सर्वत्र व्याप्त हो गयी और जब लोग उनकी स्तुति करने लगे, तब अग्निहोत्री सोमशर्मा आग बबूला हो उठा और वह उन महामुनि के प्रति विष-वमन करने लग (पच० 4/15/6-7, 5/4/7-8)।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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