SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना [71 स तन्त्र भार्यारणिसंभवेन वितर्कधूमेन तमः शिस्खेन । कामाग्निनान्तर्दृदि दह्यमानो विहाय धैर्यं विललाप तत्तत् ।। -~-सौन्दर० 7/12 महाकवि सिंह इस प्रसंग से अत्यन्त प्रभावित हैं। उन्होंने उससे प्रेरणा ग्रहण कर राजा कनकरथ की पत्नी के अपहृत हो जाने पर उसके विलाप का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया है। उसमें भाषा, भाव एवं शैली में पूर्ण अनुकरण प्राप्त होता है। तुलना के लिए देखिए –पज्जुण्णचरित, 7/10 इसी प्रकार सौन्दमन्द में तर्णित शुद्धोदन-पत्र वृह्न के बैगाण एवं पच० के प्रद्युम्न तथा अन्य पात्रों के वैराग्य के वर्णन-प्रसंगों में भी बड़ी समानता दृष्टिगोचर होती है। बुद्ध के वैराग्य का चित्र अश्वघोष ने इस . . खींचा है— तपसे तत: कपिलवस्तुं हयगजरथौघसंकुलम् ।। श्रीमदभयमनुरषतजनं स विहाय निश्चिंतमना वनं ययौ।। -सौन्दर // प्रद्युम्न के वैराग्य का वर्णन भी इसी प्रकार किया गया है। तुलना के लिए देखिए –पज्जु गचरिउ, 15/20-21 1 (2) कालिदास एवं सिंह __पज्जुण्णचरिउ में महाकवि कालिदास कृत रघुवंश, कुमारसम्भव एवं मेघदूत के प्रभाव भी विभिन्न प्रसंगों में परिलक्षित होते हैं । काव्य-वर्णन में वर्ण्य-विषय की गरिमा एवं अपनी बुद्धि की अल्पज्ञता के विषय में दोनों कवियों ने समान रूप से चर्चा की है। यथा— क्व सूर्यप्रभवो वंश: क्व चाल्पविषयामत्तिः।। . रघुवंश, 1/2 तुलना के लिए देखिए पज्जुण्णचरिउ, 1/3/6, अन्त्य प्रश० 14वाँ पद। इसीप्रकार अन्य वर्णन-प्रसंगों में जो समानता दृष्टिगोचर होती है, वह निम्नलिखित है. कुमारसम्भव के हिमालय-वर्णन एवं . पज्जुण्णचरिउ के कौशलदेश एवं कुण्डिनपुर-वर्णन में समानता द्रष्टव्य अस्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः । पूर्वापरो तोनिधी वगाय स्थित्त: प्रथिव्या इव मानदण्डः ।। -कुमार० // तुलना के लिए देखिए पज्जुण्णचरिउ 2/11/1,5/10/5 कालिदास ने जहाँ मेघ को दूत बना कर यक्ष की प्रिया के पास सन्देश भेजा है, वहाँ महाकवि सिंह ने वसन्त के आगमन पर फाल्गुन-मास को दूत बना कर भेजा, जिसने शीतकाल को डाँट कर भगा दिया। फाल्गुन को देखकर प्रेमीजन भी रति से अवश होकर अपनी प्रियाओं के पास लौटने लगे। संतप्तानां त्वमसि शरणं तत्पयोदप्रियायाः संदेश में हर धनपति क्रोधविश्लेषितस्य । गन्तव्या ते वसतिरलका नाम यक्षेश्वराणां, बाह्योद्यानस्थित हर शिरएचन्द्रिकाधौतहा ।। - (मेघदूत-पूर्वमेघ, 117) तुलना के लिए देखिए फज्जुण्णचरिउ 6/16/12-16। (3) भारवि एवं सिंह पज्जुण्णचरिउ पर भारवि के किरातार्जुनीयम के कुछ अंशों का प्रभाव पड़ा है। किरातार्जुनीयम में अर्जुन और शंकर का अनेक बार युद्ध होता है। अन्त में दोनों का मिलन हो जाता है। पज्जुण्णचरिउ में भी पजण्ण और श्रीकृष्ण का युद्ध इसी प्रकार का होता है और नारद द्वारा परिचय कराने पर दोनों का मिलन हो जाता है।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy