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महाकद सिंह विरइउ पज्जुण्णचरिउ
उसी प्रकार देह और जीव भी मिला हुआ
है ।
-15/17/13
बिना अवसर आगमन कैसा?
-2/10/11
- शूर वही है, जो रण में भिड़ता है और मर जाता है।
कहि होएविणु आगमण सूरे वि मरइ जो रणे भिडइ ।
जे मलिण हुंति ते हुववहे सुन्भ हुति ।
अहो दइ वाहियो गिरि वि दिति चिंतियउ फलु ।
किं बहु अइ असावे
सुबुद्धिए जेण जगत्तउ कलिउ ।
तो किं सिहि विज्झइ उ सलिलई ।
सलिलु वि केम सोसिज्ज पवई ।
कवणु जलहि चुलुएण सोसए ।
हुववहो व इंधणेण तोसए ।
को पडु जमदंडु खंडए ।
गुदी दंसम |
(5) सिंह तथा अन्य कवि आदान-प्रदान
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पज्जुष्णचरिउ का पूर्ववर्त्ती - साहित्य के सन्दर्भों में अध्ययन करने से विदित होता है कि महाकवि सिंह एक अध्ययनशील साहित्यकार थे। स्वग्रन्थ लेखन के पूर्व उनके सम्मुख सम्भवतः अश्वघोष, कालिदास, भारवि, माघ, महासेन आदि की कुछ कृतियाँ थीं, जिनका अवलोकन कवि ने किया था। उनका प्रभाव प०च० में स्पष्ट रूपेण परिलक्षित होता है। यहाँ पर उनका एक संक्षिप्त तुलनात्मक रूप प्रस्तुत किया जा रहा है—
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- जो मलिन होते हैं, वे अग्नि में शुभ्र हो जाते
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- भाग्यशाली पुरुष को पर्वत भी चिन्तित फल देते हैं।
-8/7/12
- अति असंगत कहने से क्या ?
-11/9/4
- बुद्धिमान वही है, जिसने तीनों लोकों को समझ लिया है।
- क्या अग्नि पानी से नहीं बुझाई जाती ?
-11/12/11
-15/16/8
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• पवन से पानी का शोषण कैसे हो जाता है? -15/16/8
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- समुद्र को बुल्लु से कौन सुखा सकता है?
-13/6/10
- ईंधन से अग्नि को कौन सन्तुष्ट कर सकता है?
-13/6/10
. प्रचण्ड यमदण्ड को कोई खण्डित कर सकता है?
-13/6/11
- सूर्य को दीपक दिखाना ।
-14/14/2
(1) अश्वघोष एवं महाकवि सिंह
अश्वघोष (प्रथम सदी) ने अपने सुप्रसिद्ध सौन्दरनन्द - महाकाव्य में राजा नन्द के दीक्षित हो जाने पर अपनी पत्नी - सुन्दरी की स्मृति आ जाने पर उनके विलाप का मार्मिक चित्रण किया है। वह क्षण-क्षण पर उसका स्मरण कर फूट-फूट कर रोने लगता है । यथा