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प्रस्तावना
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सोयइँ सुहडत्तणु पासिज्ज
..... शोक से सुभटपने का नाश होता है। -4/6/7 को-को ण गयउ महे भवण भित्तरु
- इस महान् भवन के भीतर कौन-कौन नहीं
___गया? (अर्थात् मृत्यु ही अटल सत्य है) -4/9/1 सुर-करिस्स को वसण मोडए
- सुरकरी के दाँत को कौन मोड़ सकता है?
-13/6/8 डज्झउ धम्म विहूणउँ जो णरु
-- जो मनुष्य धर्म विहीन है, वह दग्ध है।
-1515/4 विणु णाणे गउ सिवगइ लहेइ
- बिना ज्ञान के शिव-गति प्राप्त नहीं हो सकती।
-15/19/16 आउक्खइँ जयम्मि को रक्खइ
- आयु के क्षय होने पर जगत् में कौन किसे
सुरक्षित रख सकता है? -14/10/12 जं समदिदिठ देवि णिहालइ तहो दलिहु सयलु पक्खालइ – जिस प्रकार सम्यादृष्टि देव सभी को समदृष्टि
से देखता है, उसी प्रकार दरिद्रता भी सभी को
समान रूप से प्रक्षालित करती है। -11/16/9 भुवणयलु तस्स किं दुल्लहु जस्स सपुण्ण सहयरो - जिसका पुण्य सहायक है, उसके लिए भुवनतल
में क्या दुर्लभ है।
-15/3/2 तसु रवि किरण हउ तेम सयल गउ ।
- जिस प्रकार तम रवि-किरणों से हत हो जाता है, उसी प्रकार सब कुछ नष्ट हो जाता है।
-15/14/16 जाइ सरीरु-वंभ मुनि लक्खणु णउ वष्णु वि। - ब्रह्मचर्य ही मुनि की जाति, शरीर एवं लक्षण है।
वर्ण (जाति) मुनि का लक्षण नहीं। -11/97 जो संतहं दंतहं कुणइँ हासु घरु घरिणि ण संपय होइ तासु । --- जो सन्त एवं दान्त जनों की हँसी उड़ाता
है, उसके पास घर, गृहिणी एवं सम्पदा नहीं रहती।
–9/9/8 सुपुण्णु सहेज्जउ संचरइ तसु खलयणु कुखउ किं करइ ... जो सुकृत्यों को सहेज कर चलता है, उससे
खल जन क्रुद्ध हो कर भी उसका क्या कर लेंगे?
-9/14/11 पुण्णक्खइ होइ परम्मुहउ घरु घरिणि सयणु सयणिज्जउ – पुण्य के क्षीण हो जाने पर गृह-परिवार, गृहिणी,
स्वजन एवं सम्पत्ति आदि सभी पराङ्मुख हो
-15/161 पर अहिप जे रोसारुण अयाण।
- जो दूसरों के अहित में रोष से लाल रहते हैं, वे अन्नानी हैं।
-15/17/15 खीरहो जलु जेम हवेइ जुतु देहु जि आहारु जि भो णिरुतु। - दूध और जल जिस प्रकार मिश्रित रहता है,
जाते हैं।