SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना 167 है। अन्त में परिस्थिति प्रतिकूल होने एवं कंचनमाला द्वारा पुत्र पर व्यभिचार का सीधा अभियोग लगाए जाने पर पत्नी-भक्त कालसंवर बड़ी वीरता के साथ प्रद्युम्न से युद्ध भी ठान लेता है। घोर युद्ध के बाद नारद द्वारा दोनों में समझौता करा दिया जाता है। इस प्रकार कालसंवर वीर होने के साथ-साथ यद्यपि दयालु है, किन्तु उसके चरित्र में यह एक बड़ी पार भी दृष्टिगोचर हेस. है कि वह मी विचार किये बिना तथा वास्तविक मनोवैज्ञानिक तथ्य को जाने बिना ही अपनी पत्नी का एक पक्षीय स्वार्थपूर्ण एवं आकोशपूर्ण कथन सुन कर अपने स्नेही धर्मपुत्र के प्रति भी युद्ध की घोषणा कर देता है। कवि में कालसंवर के कुछ अपरनामों के भी उल्लेख किए हैं, जो निम्नप्रकार हैं- जमसंवर (9/12/3) एवं अनसितसंबर (9/5/13, 9/6/11)। रूपिणी पज्जुण्णचरिउ के नारी-पात्रों में रूपिणी का चरित्र अत्यन्त धवल, सात्विक एवं प्रभावक है। निसर्ग-सौन्दर्य उसे पूर्वजन्म के सुकृतों के फल-स्वरूप वरदान में मिला था। ऋजुता, विवेक, सहिष्णुता एवं निपछलता उसके स्वाभाविक गुण हैं। वह श्रीकृष्ण के चित्र को देख कर आकर्षित हो जाती हैं और उनके साथ द्वारिका जाने के लिए भी तत्पर हो जाती है। उसके मन में सपत्नियों के प्रति किसी भी प्रकार की ईर्ष्या एवं विद्वेष नहीं, यद्यपि उसका यह गुण नारी-स्वभाव के अत्यन्त विपरीत है। पुत्र प्रद्युम्न के अपहरण पर वह अत्यन्त दुःखी हो उठती है और उसका करुण-विलाप गगनभेदी हो उठता है। उस दुःख के कारण वह अपना विवेक खो बैठती है, यहाँ तक कि उसके मन में आत्म-हत्या करने का जघन्य-भाव भी जागृत हो जाता है, किन्तु बाद में नारद के समझाने पर वह धैर्य धारण कर लेती है और 16 वर्षों तक लगातार पुत्र की प्रतीक्षा करती रहती है। वह बड़े ही धैर्य के साथ अपनी सास-ननद की कटूक्तियों को भी सहन कर लेती है तथा अपनी सौत सत्यभामा के आक्षेपों का भी कोई उत्तर नहीं देती। नारी के क्षमा, दया, ममता, धैर्य, सन्तोष आदि सभी नैसर्गिक गुण उसमें विद्यमान हैं। उसके चरम-सन्तोष का परिचय उस समय मिलता है, जब प्रद्युम्न के पूर्व जन्म का भाई कैटभ (15/11-12) उसी के सगे भाई के रूप में जन्म लेना चाहता है, तब प्रद्युम्न अपनी माता से इस बात का उल्लेख करता है। उस समय रूपिणी कहती है कि – तुम अकेले ही मेरे लिए अनेकों के समान हो, मुझे दूसरे पुत्र की आवश्यकता नहीं, हाँ, यदि कृष्ण की दूसरी उपेक्षिता एवं दुःखी रानी जाम्बवती से बह पुत्र के रूप में उत्पन्न हो, तो मुझे विशेष प्रसन्नता का अनुभव होगा। ___ वह अत्यन्त ममतामयी नारी है। पुत्र को प्राणों से भी अधिक प्यार करती है। जब प्रद्युम्न को विरक्ति हो जाती है और वह दीक्षा लेने के पूर्व माता से आशीर्वाद ग्रहण करने आता है, उस समय रूपिणी की मनोदशा का कवि ने अत्यन्त मार्मिक चित्रण किया है। प्रद्युम्न के चरित्र के क्रमिक उत्थान के साथ-साथ माता के चरित्र में भी उत्तरोत्तर उत्कर्ष आता गया है और वह भी उसके साथ दीक्षा लेकर आर्यिका बन जाती है। सत्यभामा ___ सत्यभामा सुकेतु विद्याधर की पुत्री एवं श्रीकृष्ण की पटरानी है। ईर्ष्या विद्वेष, कलह, अहंकारिता, स्वार्थभावना जैसे दुर्गुण उसके स्वभाव के प्रमुख अंग हैं। नारी के इन दुर्गुणों का चित्रण कवि ने सत्यभामा के
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy