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प्रस्तावमा
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कर ही रखता है। धर्म-पिता—कालसंवर के साथ युद्ध करते समय भी वह इस विषय में मौन ही रहता है और मिथ्या आरोप को सहन करके भी वह राजा कालसंवर के साथ भयंकर युद्ध करता है।
प्रद्युम्न “कौतुकी-स्वभाव" वाला है। अपनी कौतुक लीलाओं के द्वारा वह सभी लोगों को आश्चर्य-चकित कर देता है। इसी स्वभाव के कारण वह अपने पिता कृष्ण से भी युद्ध करता है। माता --रुक्मिणी के प्रति उसके मन में अगाध श्रद्धा एवं भक्तिभाव है। उसके प्रति अटूट श्रद्धा होने के कारण ही वह सत्यभामा को विविध उलझनों में डालता रहता है। माता की व्यथा एवं आकांक्षा को जान कर वह उसके समक्ष अपने अनेक यथार्थ बाल रूपों को प्रस्तुत कर उसे आनन्दित करता है।
अन्त में भगवान नेमिनाथ के समवशरण में उनके द्वारा द्वारका-दहन' की भविष्यवाणी सनकर वह । हो जाता है और दीक्षित हो कर कठिन तपश्चरण करता है। अन्त में निर्वाण प्राप्त करता है।
पन्जुण्णचरिउ में प्रद्युम्न के अपरनाम भी मिलते हैं, जो इस प्रकार हैं--मन्मथ (13/6/13), सर (13/7/2), मारु (13/7/11), काम (13/10/16), अहिहाणु – कन्दर्प (13/13/10), मणौवभव (13/13/13), रइरमण (14/24/2), अंगुब्भव (15/8/2), कामपाल (15/22/7)। श्रीकृष्ण __ जैन-पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण 9वें नारायण तथा 63 शलाका महापुरुषों में एक युगपुरुष के रूप में प्रसिद्ध हैं। प०च० में उनका चरित्र अत्यन्त उज्ज्वल रूप में वर्णित है। उनकी यद्यपि अत्यन्त सौन्दर्यशालिनी 16 हजार युवती रानियाँ थीं, फिर भी वे रूपिणी के छाया-चित्र को देख कर उस पर आकर्षित हो जाते हैं और कुण्डिनपुर से उसका अपहरण कर लेते हैं। वे रसिक होने के साथ ही साथ अत्यन्त वीर भी हैं। उन्होंने रूपिणी के अपहरण के समय बलराम के साथ अकेले ही अनेक वीरों को धराशायी कर शिशुपात का वध कर डाला था और रूपिणी को लेकर द्वारिका वापिस आ गये थे।
वे प्रजा-वत्सल थे। उनके राज्य में चारों और सुख-शान्ति व्याप्त थी। परिवार के प्रति उनके मन में बड़ी ममता थी। उनका पुत्र-वात्सल्य आदर्श था। प्रद्युम्न का जब अपहरण हो जाता है, तब वे अत्यन्त विचलित हो उठते हैं और अत्यन्त करुण-विलाप करने लगते हैं। उनका यह विलाप ही प्रद्युम्न के प्रति उनके असीम स्नेह का परिचायक है। द्वारका-दहन की भविष्यवाणी, पुत्रों के वैराग्य एवं रानियों के दीक्षित हो जाने पर भी वे अपने राजकाज में लिप्त रहते हैं, यह उनका अपने दायित्वों के प्रति सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। इस प्रकार का चित्रण कर कवि ने श्रीकृष्ण की जन-हितैषिता तथा सर्वोदयी-प्रवृत्ति को अधिक मुखरित किया है।
प०च० में कवि ने कृष्ण के अपरनामों के भी उल्लेख किये हैं जो इस प्रकार हैं-- अद्धचन्द (13/4/14), गोविन्द (12/28/1!), हरि (13/5/12), किण्हु (13/5/15), महुमहण (13/6:1), केसव (13/7/5), सिरीहर (13/7/7), माहव ((13/7/12), पंकयणाभ (1313/15), सारगंधर (13/14/15), चक्कपाणि (15:21/4), लच्छीहर (15/9/10), माणस (13/8/3), कंसारि (13/12/19) एवं चक्कनाभ (15/22/8)| बलभद्र
बलभद्र का चरित्र एक वीर-पराक्रमी महापुरुष तथा कृष्ण के एक परम विश्वस्त निस्वार्थ सहयोमी के रूप में चित्रित किया गया है। वे कृष्णा के बड़े भाई हैं और उसी रूप में वे उन्हें अनुज के रूप में अत्यन्त स्नेह भी